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18- धृति, + श्रब्रह्म, पापस्थानक ।
19- प्रतिधृति ।
20 -
44 / पाण्डुलिपि - विज्ञान
15- तिथि, घर, दिन, ग्रह्न पक्ष आदि । + परमार्थिक ।
16- नृप, भूप, भूपति, अष्टि, कला, आदि । + इन्दुकला, शशिकला ।
17
प्रत्यष्टि |
21 -
22 -
नख, कृति ।
उत्कृति, प्रकृति, स्वर्ग ।
कृति, जाति, + परीषद् |
23-- विकृति ।
24 -- गायत्री, जिन, श्रर्हत्, सिद्ध ।
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दो
25- तत्त्व |
27- नक्षत्र, उडु, भ, इत्यादि ।
32
दन्त, रद + रदन ।
33
देव, अमर, त्रिदण, सुर ।
नरक ।
4048- जगती ।
49
तान, पवन ।
+ 64 स्त्री कला ।
+72 - पुरुष कला ।
यह बात यहाँ ध्यान में रखना आवश्यक है कि एक ही शब्द कई अंका के पर्याय के रूप में आया है । उदाहरणार्थ -- तत्त्व 3, 5, 9, 25 के लिए आ सकता है । उपयोग कर्ता और अर्थ कर्त्ता को उसका ठीक अर्थ अन्य सन्दर्भों से लगाना होगा ।
साहित्य में भी कविसमय या जाता है | साहित्य-शास्त्र के एक ग्रन्थ से जाती है जो 'काव्य कल्पलता वृत्ति' में दी गयी है ।
संख्या
पदार्थ
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काव्य रूढ़ि के रूप में संख्या को शब्दों द्वारा बताया यहाँ शब्द और संख्या विषयक तालिका उद्धृत की
अगुष्ठ,
एक- आदित्य, मेरु, चन्द्र, प्रासाद, दीपदण्ड, कलश, खंग, हर नेत्र, शेष, स्वर्दण्ड, हस्तिकर, नासा, वंश, विनायक -दन्त, पताका, मन, शक्राश्व, अद्वैतवाद ।
भुज, दृष्टि, कर्ण, पाद, स्तन, संध्या, राम-लक्ष्मण, श्रृंग, गजदन्त, प्रीति रति, गंगा-गौरी, विनायक -स्कन्द, पक्ष, नदीतट, रथधुरी, खंग-धारा, भरत शत्रुघ्न, रामसुत, रवि चन्द्र ।
तीन- भुवन, वलि, वह्नि, विद्या, संध्या, गज-जाति, शम्भुनेत्र, त्रिशिरा, मौलि, दशा, क्षेत्रपाल - फरण, काल, मुनि, दण्ड, त्रिफला, त्रिशूल, पुरुष, पलाश - दल, कालिदासकाव्य, वेद, अवस्था, कम्बुग्रीवारेखा, त्रिकूट-कूट, त्रिपुर, त्रियामा, यामा, यज्ञोपवीत सूत्र, प्रदक्षिणा, गुप्ति, शल्य, मुद्रा, प्ररणाम, शिव, भवमार्ग, शुमेतर ।
चार- ब्रह्मा के मुख, वेद, वर्ग, हरिभुज, सूर-गज-रद, चतुरिका स्तम्भ, सघ, समुद्र, प्राश्रम, गो-स्तन, श्राश्रम कषाय, दिशाएँ, गज जाति, याम, सेना के अंग, दण्ड, हस्त,
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