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पाण्डुलिपि-ग्रन्थ-रचना-प्रक्रिया/55
तीसरा प्रकार:
कोरडए वि सरावे, अंगुलिया कोरडम्मि कज्जलए । मद्दह सरावलग्गं, जावं चिय चि (वक) गं मुअइ । पिचुमंद गुंदलेसं, खायर गुदं व बीयजल मिस्सं ।
भिज्जवि तोएण दढं, मद्दह जातं जलं मुसइ। अर्थात् नये काजल को सरवे (सकोरे) में रखकर ऊँगलियों से उसे इतना मलें या रगड़ें कि सरवे से लगकर उसका चिकनापन छूट जाय । तब नीम के गोंद या खेर के गोंद
और वियाजल के मिश्रण में उक्त काजल को मिलाकर इतना घोटें कि पानी सूख जाये फिर वड़िया बना लें। चौथा प्रकार :
निर्यासात् विचुमंद जात् द्विगुरिणतो बोलस्ततः कज्जलं, संजातं तिलतैलतो हुतवहे तीव्रतपे मर्दितम् । पात्रे शूल्बमये तथा शन (?) जलैक्षि रमै वितः,
सद्भल्लातक-मृगराज रसयुतो सम्यग् रसोऽयं मषी।। अर्थात नीम का गोंद, उससे दुगुना बीजाबोल, उससे दुगुना तिलों के तेल का काजल लें। ताँबे की कढ़ाही में तेज आंच पर इन्हें खूब घोंट और उसमें जल तथा अलता (लाक्षारस) को थोड़ा-थोड़ा करके सौ भावनाएँ दें और अच्छी स्याहो बनाने के लिए इसमें शोधा हुअा भिलावा तथा भॉगरे का रस डालें ।। पाँचवा प्रकार :
पाँचवें प्रकार की स्याही का उपयोग ब्रह्म देश, कर्नाटक आदि देशों में ताड़-पत्र पर लिखने में होता था।
ऊपर के सभी प्रकार ताड़-पत्र पर लिखने की स्याही के है ।
भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ. 38-40. श्लोक में तो यह नहीं बताया गया है कि उक्त मिश्रण को कितनी देर धोटना चाहिए परन्तु जयपुर में कुछ परिवार स्याही वाले ही कहलाते हैं। त्रिपोलिया के बाहर ही उनकी प्रसिद्ध दुकान थी। वहाँ एक कारखाने के रूप में स्याही बनाने का कार्य चलता था। महाराजा के पोथीखाने में भी 'सरबरा. कार' स्याही तैयार किया करते थे। इन लोगों से पूछने पर ज्ञात हुआ कि स्याही की घटाई कम से कम आठ पहर होनी चाहिए । मात्रा अधिक होने पर अधिक समय तक घोटना चाहिए।
-गोपालनारायण बहुरा 3. पहले कह चुके हैं कि ताइपन्न पर स्याही से कलम द्वारा भी लिखते हैं और लोहे की नोंकदार कृतरम्भी
से अक्षर कुरेदे भी जा सकते हैं। लिखने के लिए तो ऊपर लिखी विधियों से बनाई हई स्थाहियां दी काम में आती हैं, परन्तु कुरेदे हुए अक्षरों पर काला चूर्ण पोत कर कपड़े से साफ करते हैं। इससे वह चूर्ण कुरेदे हुए अक्षरों में भरा रह जाता है और पत्र के समतल भाग से कज्जल या काला चर्ण अपसारित हो जाता है। फिर अक्षर स्पष्ट पढ़ने में आ जाते हैं। समय बीतने पर यदि अक्षर फीके पड जावे तो यह विधि दोहरा दी जाने पर पुन: अक्षर स्पष्ट हो जाते हैं। ऐमा मषी-चूर्ण बनाने के के लिए नारियल की जटा या केंचुल तथा बादाम आदि के छिलके जलाकर पीस लिए जाते हैं।
-गोपालनारायण बहुरा
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