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पाण्डुलिपि-ग्रन्थ-रचना-प्रक्रिया/49
इसी प्रकार 'वेद' को पुस्तक रूप में लिखना निषिद्ध बताया गया है। जो व्यक्ति लिख कर वेदां का पाठ करता है उसे ब्रह्महत्या लगती है, और घर में लिखा हुआ वेद रखा हुआ हो तो उस पर वज्रपात होता है। लेखक विराम में शुभाशुभ
भा० जै० श्र० सं० में शुभाशुभ की एक और परम्परा का उल्लेख हुआ है । यदि लेखक या प्रतिलिपिकार लिखते-लिखते बीच में किसी कार्य में लेखन-विराम करना चाहता है तो उसे शुभाशुभ का ध्यान करना चाहिये ।
उसे क, ख, ग, च, छ, ज, ठ, ढ, ण, थ, द, ध, न, फ, भ, म, य, र, ष, स, ह, क्ष, ज पर नहीं रुकना चाहिये । इन पर रुकना अशुभ माना गया है । शेष में से किसी भी अक्षर पर रुकना शुभ है।
अशुभ अक्षरों के सम्बन्ध में अलग-अलग अक्षर की फल श्रुति भो उन्होंने दी है।
'क' कट जावे, 'ख' खा जावे, 'ग' गरम होवे, 'च' चल जावे, ‘छ, छटक जावे, 'ज' जोखिम लावे, 'ठ' ठाम न बैठे, 'ढ' ढह जाये, 'रण' हानि करे, 'थ' थिरता या स्थिरता करे, 'द' दाम न दे, 'ध' धन छुड़ावे, 'न' नाश या नाठि करे, 'फ' फटकारे, 'भ' भ्रमावे, 'म' मठ्ठा या मन्द है, 'य' पुनः न लिखे, 'र' रोदे, 'ष' खिचावे, सन्देह धरे, 'ह' हीन हो, 'क्ष' क्षय करे, 'ज्ञ' ज्ञान न हो।
जिन्हें शुभ माना गया है उनकी फल-श्रुति इस प्रकार है :
'घ' घरुड़ी लावे, “झ' झट करे, 'ट' टकावी (?) राखे, 'ड' डिगे नहीं, 'त' तुरन्त लावे, 'प' परमेश्वर का है, 'ब' बनिया है, 'ल' लावे, 'व' वावे (?), 'श' शान्ति करे।
इसमें मारवाड़ की एक और परम्परा का भी उल्लेख किया गया है कि वहाँ 'व' अक्षर आने पर ही लेखन-विराम किया जाता है और बहुत जल्दी उठना आवश्यक हुआ तो एक अन्य कागज पर 'व' लिख कर उठते हैं ।
शुभाशुभ सम्बन्धी सभी बातें अन्ध-विश्वास मानी जायेंगी पर ग्रन्थ-रचना या ग्रन्थ-लेखन या प्रतिलिपिकरण में ये परम्पराएँ मिलती हैं, अतः पांडुलिपि-विज्ञान के जानार्थी के लिए यहाँ देदी गई हैं।
भारतीय भावधारा के अनुसार लेखन प्रक्रिया में आने वाली सभी वस्तुओं के साथ गुण-दोष या शुभ-अशुभ की मान्यता से एक टोने या अनुष्ठान की भावना गुथी रहती है । इसी प्रकार 'लेखन' के लिए जो अनिवार्य उपकरण है उस लेखनी के साथ भी यह धार्मिक भावना हमें ग्रन्थों में वरिणत मिलती है : लेखनी : शुभाशुभ
लेखनी के सम्बन्ध में ये प्रचलित श्लोक "भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला' में दिये गये हैं :
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