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पाण्डुलिपि - ग्रन्थ रचना-प्रक्रिया / 51
उत्कीर्ण करने वाली शलाका भी लेखनी है । चित्रांकन करने वाली कूंची तूलिका भी लेखनी है, अतः लेखनी का अर्थ बहुत व्यापक है । लेखन के अन्य उपकरणों के नाम ऊपर दिये जा चुके हैं । बूहलर ने बताया है कि “The general name of 'an instrument for writing' is lekhani, which of course includes the stilus, pencils, brushes, reed and wooden pens and is found already in epics"
नरसल या नेजे की लेखनी का प्रयोग विशेष रहा। इसे 'कलम' कहा जाता है । 2 इसके लिए भारतीय नाम है इषीका या ईषिका जिसका शब्दार्थ है नरसल ( reed ) ।
डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में कलम शीर्षक से यह सूचना दी है कि :
"विद्यार्थी लोग प्राचीन काल से ही लकड़ी के पाटों पर लकड़ी की गोल तीखे मुख की कलम (वर्णक) से लिखते चले आते हैं । स्याही से पुस्तकें लिखने के लिए नड (ब) या बाँस की कलमें (लेखनी) काम में श्राती हैं। अजंता की गुफाओं में जो रंगों से लेख लिखे गये हैं वे महीन बालों की कलमों (वर्तिका) से लिखे गये होंगे । दक्षिणी शैली के ताड़पत्रों के अक्षर कुचरने के लिए लोहे की तीचे गोल मुख की कलम ( शलाका) अब तक काम में आती है । कोई-कोई ज्योतिषी जन्मपत्र और वर्षफल के खरड़ों के लम्बे हाशिये लाते हैं, जिसका ऊपर
तथा आड़ी लकीरें बनाने में लोहे की का भाग गोल और नीचे का स्याही के
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कलम को अब तक काम परकार जैसा होता है ।
पाश्चात्य जगत् में एक ओर तो पत्थरों और शिलाओं में उत्कीर्ण करने के लिए छैनी (Chisel ) को आवश्यक माना गया है, वहीं लेखनी के लिए पंख ( पर या पक्ष), नरसल या धातु शलाका का भी उल्लेख मिलता है । पाश्चात्य जगत् में पंख की लेखनी का प्राचीनतम उल्लेख 7 वीं शती ई० में मिलता है 14
कोडेक्स आधुनिक पुस्तक का पूर्वज है । यह एक प्रकार से दो या अधिक काष्ठपाटियों से बनती थी । ये काष्ठ पाटियाँ एक छोर पर छेदों में से लौह छल्लों से जुड़ी रहती थीं । इन पर मोम बिछा रहता था। इस पर एक धातु शलाका से खुरच कर या कुरेद (उकेर) कर अक्षर लिखे जाते थे ।
'One wrote or scratched (which is the original meaning of the word) with a sharply pointed instrument, the stylus which had at the other end a flat little spatula for erasing, like the eraser at the end of the modern pencil'.5
यह स्टाइलस ओझा जी की बताई शलाका जैसी ही विदित होती है। इसी से मोमपाटी पर अक्षर उत्कीर्ण किये जाते थे ।
1. Buhler, G.-Indian Palaeography, p. 147.
2. वहीं, 147।
3. भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ. 157
4.
5.
Encyclopaedia Americana (Vol. 18), p. 241.
Op. cit., (Vol. 4), p. 225.
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