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पाण्डुलिपि-ग्रन्थ-रचना-प्रक्रिया 33
4. विराम चिह्न 5. पृष्ठ संख्या, 6. संशोधन, 7. छूटे अंश, 8. संकेताक्षर, 9. अंक-मुहर (Seal) ये पांडुलिपियों में नहीं लगाई जाती थी, प्रामाणिक
बनाने के लिए दानपत्रों आदि और वैसे ही शिला
लेखों में लगाई जाती थीं। 10. लखन द्वारा अंक प्रयोग (शब्द में भी) विशेष
विशिष्ट परम्पराओं का सम्बन्ध लेखकां में प्रचलित धारणाओं या मान्यतामों से विदित होता है । ये निम्न प्रकार की मानी जा सकती हैं :
1. मंगल-प्रतीक या मंगलाचरण 2. अलंकरण (Illumination) 3. नमोकार (Invocation) 4. स्वस्तिमुख (Intiiation) 5. आशीर्वचन (Benediction) 6. प्रशस्ति (Laudation) 7. पुष्पिका, उपसंहार (Colophone, Conclusion) 8. वर्जना (Imprecation) 9. लिपिकार प्रतिज्ञा
10. लेखनसमाप्ति शुभ शुभाशुभ ___कुछ बातें लेखन में शुभ कुछ अशुभ मानी गई हैं, ये भी परम्परा से प्राप्त हुई हैं :
यथा
1. शुभाशुभ प्राकार 2. शुभाशुभ लेखनी
3. लेखन का गुण-दोष ___4. लेखन-विराम में शुभाशुभ इनमें से प्रत्येक पर कुछ विचार आवश्यक हैसामान्य परम्पराएँ—ये वे हैं जो लेखन के सामान्य गुणों से सम्बन्धित हैं । यथा :
(1) लेखन-दिशा-लेखन की दिशाएँ कई हो सकती हैं। 1-ऊपर से नीचे की ओर, 2-दाहिनी से बाईं ओर, 3-बायीं से दाहिनी ओर, 4-बायीं से दाहिनी अोर पून
1. चीनी लिपि । 2. खरोष्ठी लिपि, फारसी लिपि । 3. नागरी (ब्राह्मी)।
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