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32/पाण्डुलिपि-विज्ञान
कर सिर से लगाते थे और मन से क्षमा-याचना करते थे। जैनियों में 'पाशातना' की भावना लेखन की इसी शुचिता के सिद्धान्त पर खड़ी हुई है । पुस्तक पर थूक आदि अपवित्र वस्तु न लगे, पैर की ठोकर न लगे, इन बातों का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक माना गया । यह विधान भौतिक दृष्टि से तो पुस्तक की रक्षा के लिए ही था, जिसे धार्मिक परिवेश में रखा गया । वस्तुतः समस्त 'लेखन' व्यापार के साथ मूल प्रानुष्ठानिक टोने का परिवेश-भाव भी जुड़ा हुआ है तभी उसके प्रति धार्मिक पावनता का व्यवहार विद्यमान है और धर्म में उसे स्थान मिल सका है।
सम्भवतः इसीलिए बहुत से हस्तलिखित ग्रन्थों के अन्त में निम्नलिखित संस्कृत श्लोकों में से एक लिखा हुआ मिलता है :
'जलाद् रक्षेत स्थलाद् रक्षेत्, रक्षेत् शिथिल बन्धनात्, मूर्ख हस्ते न दातव्या, एवं बदति पुस्तिका ।" "अग्ने रक्षेत् जलाद् रक्षेत्, मूषकेभ्यो विशेषतः । कष्टेन लिखितं शास्त्र, यत्नेन परिपालयेत्" "उदकानिल चौरेभ्यो, मूषकेभ्यो हुताशनात्
कष्टेन लिखितं शास्त्र, यत्नेन परिपालयेत" इन श्लोकों में हस्तलेखों को नष्ट करने वाली वस्तुओं के प्रति सावधान रहने का संकेत है।
जल से ग्रन्थ की रक्षा करनी चाहिये। जल कागज-पत्र को गला देता है, स्याही को फैला देता है या धो देता है और ग्रन्थ को धब्बेदार बना देता है, जल से धातु पर मोर्चा लग जाता है । स्थल से भी रक्षा करनी होती है । कागज पत्र परधूल पड़ जाती है तो वह जीर्ण होने लगता है, तडकने लगता है। स्थल में से दीमक प्रादिनिकल कर ग्रन्थ को चट कर जाते हैं, धूल और लू दोनों ही ग्रन्थ को हानि पहुंचाते हैं । अग्नि से ग्रन्थ की रक्षा की जानी चाहिये, इसमें दो मत नहीं हो सकते । चूहों से ग्रन्थ की रक्षा का विशेष प्रयत्न होना चाहिये । ग्रन्थ की रक्षा चोरों से भी करनी चाहिये । ग्रन्थों की चोरी पहले होती थी, और आज भी होती है । हस्तलिखित ग्रन्थ अाज अत्यन्त मूल्यावान सामग्री मानी जाती है, अतः हस्तलिखित ग्रन्थ की चोरी आज उससे बड़ी धन-राशि पाने की आशा से की जाती है । इन हस्तलेखों का बाजार आज विदेशों में भी बन गया है, अतः चोरी का भय विशेष बढ़ गया है।
श्लोक में इस बात की ओर ध्यान दिलाया गया है कि शास्त्र ग्रन्थ कष्टपूर्वक लिखा जाता है, अतः यत्नपूर्वक इन की रक्षा की जानी चाहिये । अन्य परम्पराएँ
भारतीय हस्तलिखित ग्रन्थों में लेखकों द्वारा कुछ परम्पराओं का अनुसरण किया हैजो इस प्रकार हैं : सामान्य 1. लेखन-दिशा,
2. पंक्ति बद्धता, लिपि की माप, 3. मिलित शब्दावली,
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