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30/पाण्डुलिपि-विज्ञान
1. गुरु की कृतियों में, साम्प्रदायिक भावना के अनुसार कुछ समावेश जोड़-तोड़। 2. गाँव किसका है ? ज्यादा कौन लोग हैं ? घर किसका है ? बास किसका है ? किस
पर निर्भर है ? जैसे---यदि राजपूतों का गाँव है, तो सम्भव है कि सम्बन्धित प्रति में वह ऐसा नाम बैठा दे जैसा प्रायः राजपूतों के होते हैं क्योंकि पात्र प्रतीक हैं, अथवा (युद्ध से सम्बन्धित) घटना में मिश्रण कर दें : उनकी प्रसन्नता हेतु ।
यदि घर 'थापनों' का है, तो नाम-साम्य के कारण प्रसिद्ध कवि को भी थापन बना दे, लिपिकार यदि जाति-विशेष का है, तो कवि-विशेष को भी उस जाति का बना दे।
उदाहरण : सुरजनदासजी पूनिया जाति के थे । पूनिया थापन नहीं होते। थापन लिपिकार ने/थापन के घर में रहकर लिखने वाले ने/थापन के कहने से लिखने वाले ने इनको थापन लिख दिया ।
3.
डेरा किसका है ? साथरी की शिष्य-परम्परा क्या है ? 'देश' का नाम क्या है ? प्रथम से गद्दीधारी महन्त का, उसके गुरु का, उसके सम्प्रदाय की मान्यताओं का निदर्शन यत्र-तत्र किया गया मिलेगा । साथरी वाली स्थिति में प्रथम गुरु और उसके किसी शिष्य का नाम-उल्लेख किया गया मिलेगा। 'देश' का नाम लिखने वाला उससे इतर प्रान्त का होगा ।
समय क्या था ? कौनसी 'जातरा' थी ? मन्दिर किसका था ? प्रधान उपदेशक कौन था, (उसका सम्प्रदाय और गुरु कौन था) अवसर क्या था ? निश्चित है कि यत्र-तत्र इनसे सम्बन्धित पंक्तियाँ (मूल पाठ को तोड़-मरोड़ कर) यदि भावुक
हुआ तो भावावेश में लिपिक लिख देगा। 5. किसके कहने आदेश पर लिखी, उसकी पूर्वज-परम्परा और मान्यता का समावेश
हो सकता है।
इसमें सचेष्ट विकृति के उदाहरण पदे-पदे मिलेंगे । तात्पर्य यह है कि मूल रचना को (यदि वह किसी भी प्रकार से अस्पष्ट, दुरूह और कठिन हो तो भी) सरल
करके रखना होता है। 7. इसमें भी उपर्युक्त (6) बात हो सकती हैं । अन्तर यह है कि इसमें एक विशेष
सुरुचि, सफाई और एकान्विती तथा एकरूपता का ध्यान रखा जाता है । 8. यह मक्षिका स्थाने मक्षिका-पात का उदाहरण है । इस प्रकार की प्रति अपेक्षाकृत
अधिक विश्वसनीय होगी। 9. इसमें भी (6 व 7) स्थिति आएगी। 10. ऐसे लिपिकार भी तुलना की दृष्टि से अधिक विश्वसनीय हैं । उनका ध्येय रचना
विशेष को आगे लाना ही प्रायः पाया गया है।
महत्त्वपूर्ण बात :
इस सम्बन्ध में अन्तिम एक बात और है । जहाँ लिपिकार स्वयं कवि हो, स्वयं के
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