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पाण्डुलिपि-ग्रन्थ-रचना-प्रक्रिया 21
है जिनसे उस काल में लेखन-व्यवसाय विशेषज्ञ का पता ललता है । पोथक (पाण्डुलिपि) लेखक का दो बार उल्लेख मिलता है और यह लेखक व्यावसायिक विशेषज्ञ लेखक ही हो सकता है।
शिला-लेखों के अनुसंधान से विदित होता है कि सांची स्तूप के एक शिलालेख में 'लेखक' का प्राचीनतम उल्लेख है। यहाँ 'लेखक' लेखन-व्यवसाय प्रवृत्त व्यक्ति ही है, बूलर ने इस शिला-लेख का अनुवाद करते हुए लेखक का अर्थ 'कापीइस्ट प्रॉव मैन्युस्क्रिप्टस्' (Copyist of Mss) या राइटर, क्लर्क ही दिया है। बाद के कितने ही शिलालेखों से सिद्ध होता है कि 'लेखक' शब्द से व्यवसायी लेखन कला विज्ञ का ही अभिप्राय है और इस समय तक 'लेखक-वर्ग' एक व्यवसायवाची शब्द हो गया था। ये लेखक शिलालेखों पर उत्कीर्ण किये जाने वाले प्रारूप तैयार किया करते थे। बाद में लेखक को पाण्डुलिपिकर्ता का कार्य सौंपा जाने लगा-ये लेखक बहुधा ब्राह्मण होते थे, या दरिद्र और थकेमाँदे वृद्ध कायस्थ । मन्दिरों और पुस्तकालयों में इन लेखकों की नियुक्ति ग्रन्थ-लेखन के लिये की जाती थी।
लेखक के पर्यायवाची जो शब्द भारतीय परम्परा में मिलते हैं वे हैं। लिपिकार या लिबिकार या दिपिकार । इस शब्द का प्रयोग चतुर्थ शती ई० पू० में हुआ मिलता है । प्रशो 6 के अभिलेखों में यह शब्द कई बार आया है। इनमें यह दो अर्थों में आया है । एक तो लेखक दूसरे शिलानों पर लेख उत्कीर्ण करने वाला व्यक्ति । संस्कृत कोषों में इसे लेखक का ही पर्यायवाची माना गया है, जैसे-अमरकोश में--"लिपिकारोऽक्षरचणोऽ क्षर चुचुश्च लेखके" । डॉ० राजबली पाण्डेय ने बताया है कि, A persual of Sanskrit literature and epigraphical documents will show that the 'lekl aka'....and it was employed more in the sense of a copyist' and 'an engraver' than in the sense of 'a writer.'
यों लिपि' और 'लिपिकार' शब्द का प्रयोग पाणिनि की अष्टाध्यायी में भी हुआ है । डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का निष्कर्ष है कि पाणिनि के समय में 'लिपि' का अर्थ होता था लेखन तथा लेख ।
1. Pandey, R. B.--Indian Palaeography, P. 90. 2. India As Known to Panini (अध्याय ५, खण्ड २, पृ० ३११) में बताया है कि गोल्डस्टुकर
के मतानुसार 'लेखन कला' पाणिनि से बहुत पूर्व से प्रचलित थी। पाणिनि की वैदिक साहित्य ग्रन्थ रुप (MSS) में भी उपलब्ध था। डॉ० अग्रवाल का कथन है कि पाणिनि ने 'ग्रन्थ'. 'लिपिकार' 'यवनानी लिपि' आदि शब्दों का उपयोग किया है। अतः इसमें सन्देह नहीं रह जाता कि पाणिनि के समय लेखन कला विकसित हो चुकी थी। डॉ० अग्रवाल ने आगे लिखा है कि
___(i) Lipikar (HI. 2.21) as well as its variant form libikara', denoted a writer. The term lipi with its variant was a standing term for writing in the Maurya period and earlier. Dhammalipi, with its alternative form dharmalipi, stands for the Edicts of Asoka engraved on rocks in the third centiry F.C. An engraver is there referred to as lipikara (M.R.E. 11). Kautilya also knows the term : 'A king shall learn the lipi (alphatet) and sankhyana (numbers, Arth 1.5). He also refers to samjna-lipi. 'Code Writing' (Arth. I. 12) used at the espionage Institute in the Behistum inscription we find lipi for engraved writing. Thus it is certain that lipi in the time of Panini meant writing and script'.
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