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20/ पाण्डुलिपि - विज्ञान
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भौतिक सामग्री में निम्नलिखित वस्तुएँ प्राती हैं
1. लिप्यासन - वह वस्तु जिस पर लिखा जाना है; यथा- ईंट, पत्थर, कागज, पत्र (ताड़ पत्र ), धातु, चमड़ा, छाल (भूर्जपत्र ), पेपीरस, कपड़ा आदि । इसकी विस्तृत चर्चा 'प्रकार' शीर्षक अध्याय में की गई है क्योंकि लिप्यासन भेद से भी ग्रन्थ-भेद माने जाते हैं ।
2. मसि - स्याही
3. लेखनी - कूंची, टाँकी, कलम आदि ।
4. डोरा
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सीप, नारियल आदि की कर गांठ दी जाती है । कहते हैं ।
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5. काष्ठ-पट्टिकाएँ (काम्बिका)
6. वेष्ठन -- छंदजु (ग्राच्छादन)
7. ग्रन्थि - - ताड़पत्र आदि के ग्रन्थों में बीच में छेद करके डोरी पिरोयी जाती है । ग्रन्थ के दोनों ओर इस डोरी के दोनों छोरों पर
लकड़ी, हाथी- दाँत,
गोल टिकुली में से इस डोरी को निकाल इन टिकुलियों को भी ग्रन्थि या गांठ
8. हड़ताल या हरताल -- गलत लिख जाने पर उसे मिटाने का साधन है
'हड़ताल' । तीसरा पक्ष है-लिपि और लिपिकार
लिपिकार और लेखक तब ही पर्यायवाची होते हैं, जब लेखक ही लिपिकार का भी काम करता है । दोनों के लिए लिपि ज्ञान और उसका अभ्यास अवश्य अनिवार्य है । जी. बहलर ने हमें बताया है कि प्राचीन काल में इन लेखकों या लिपिकारों के लिये निर्देश -ग्रन्थ लिखे गये थे । दो ऐसे ग्रन्थों का उन्होंने उल्लेख भी किया है : 1. लेख पंचाशिका । इसमें निजी पत्रों की रचना का वर्णन ही नहीं है वरन् पट्टों, परवानों तथा राजाओं की संधियों को लिखने का रूप भी बताया गया है । दूसरी पुस्तक है क्षेमेन्द्र व्यासदास रचित 'लोक प्रकाश' जिसके एक भाग में हुंडी, अनुबंध आदि तैयार करने के रूप बताये गये हैं । वत्सराज सुत हरिदास की 'लेखक मुक्ता मणि' का भी यही विषय है । एक ऐसी ही कृति महाकवि 'विद्यापति' की 'लिखनावली' भी है। इसका रचना काल सन् 1418 ई० है ।
लेखक : ग्रन्थ रचना में यह सबसे प्रधान पक्ष है ।
'लेखक' शब्द लेखन-क्रिया के कत्र्ता के लिये प्राचीनतम शब्द माना जा सकता है । रामायण एवं महाभारत में इसका उपयोग हुआ है । इससे विदित होता है कि महाकाव्य - युग में 'लेखक' होना एक व्यवसाय भी था और लेखन कला की प्रतिष्ठा भी हो चुकी थी । पालि में 'विनय-पिटक' के लेखन को एक महत्त्वपूर्ण और श्लाध्य कला माना गया है और भिक्खुरियों को लेखन कला की शिक्षा देने का विधान है ताकि वे पवित्र धर्मग्रन्थों का लेखन कर सकें । इस काल में पिता की इच्छा यही मिलती है कि उसका पुत्र लेखक का व्यवसाय ग्रहण करे, ताकि वह सुखी रह सके । महावग्ग और जातका में भी ऐसे उल्लेख
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