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18/पाण्डुलिपि-विज्ञान
से प्रारम्भ होता है और जहाँ 'ग्रंथ लेखन' मुद्रणालयों के प्रा जाने के कारण स्वतन्त्र महत्त्व नहीं प्राप्त कर सका।
भारत जैसे प्राचीन देश में तथा ऐसे ही अन्य प्राचीन देशां में हस्तलेखागार में ज्ञान-विज्ञान के हस्तलेख या पांडुलिपियाँ बड़ी संख्या में मिलते हैं।
__इसका एक आभास हस्तलेखागारों की उस सूची से हो जाता है जो हम पहले दे चुके हैं । मुद्रण-यन्त्र के प्रचलन से बहुत पूर्व से पांडुलिपियाँ प्रस्तुत की जाती रही हैं । अतः ऐसे पांडुलिपि भाण्डागारों का उद्देश्य अनुसंधान से जुड़ा होकर भी विस्तृत है। इतिहास के विविध युगों में ज्ञान-विज्ञान की स्थिति ही नहीं ज्ञान-विज्ञान के सूत्रों को जानने के साधन भी ग्रंथागारों में उपलब्ध होते हैं । महत्त्व
फलतः पांडुलिपि-विज्ञान का महत्त्व स्वयं-सिद्ध है । पांडुलिपि-विज्ञान के विधिवत जान से इस महान् सम्पत्ति को समझने-समझाने का द्वार खुलता है, और हम रस्किन के शब्दों में, 'राजसी-सम्पदाकोष' (Kings Treasuries) में प्रवेश पाकर अभूतपूर्व रत्नों की परख करने में समर्थ हो सकते हैं । यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।
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