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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
व्यवस्था को हतोत्साहित किया गया है। जबकि महा पुराण ने जाति-व्यवस्था को मान्यता प्रदान की है । महा पुराण का प्रभाव उत्तरवर्ती जैन ग्रन्थों में मिलता है ।
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उपजातियाँ : सामाजिक एवं आर्थिक विश्लेषण : जैन पुराणों में जिन उपजातियों का उल्लेख हुआ है उन्हें दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं । प्रथम, जिनका आविर्भाव सामाजिक संश्लेषण के परिणामस्वरूप हुआ था । द्वितीय, जो तत्कालीन विशिष्ट आर्थिक परिस्थितियों के फलस्वरूप आविर्भूत हुए थे ।
प्रथम वर्ग के अन्तर्गत सामाजिक आवर्त्त', ( म्लेच्छों की उपजाति), आरण्य ( म्लेच्छों की उपजाति), चिलात', ( धार्मिक उत्सवों में सम्मिलित होने वाली जंगली जाति); म्लेच्छ', शबर । "
द्वितीय वर्ग में आर्थिक दृष्टिकोण से अग्रलिखित उपजातियाँ आती हैं : क्लारिन" ( शराब द्वारा आजीविका चलाने वाली ), कपाटजीवि २ ( बढ़ई), कुलाल " (कुम्भकार), कुविन्द" ( जुलाहा ), कंवर्त" ( कहार), गोपाल ( अहीर या आभीर),
१. पद्म ११।१६५-२०२
२.
फूल चन्द्र - वर्ण, जाति और धर्म, काशी, १६६३, पृ० १५८-१६४
३.
महा ३२|७६
४. वही १६ १६१
५. वही १६।१६१
६. वही ३२|७६
७.
वही ३६ । १६८
८.
पद्म ४१।३; महा १६ १६१
६. वही २७।५; वही ४१।६६
दृष्टि से निम्नवत् उपजातियाँ आती हैं ; चरट" (जंगली योद्धाओं की जाति), ( म्लेच्छों की उपजाति), दिव्या जाति), पुलिन्द (असभ्य एवं वर्वर
१०.
११. हरिवंश ३३।६०
वही ७/२६६, ३२ २६; महा १६।१६१
१२. पद्म ६१।२४
१३. वही ५।२८७; महा २५।१२६
१४. महा ४।२६
१५. पद्म १४।२७
१६. वही ३४ । ६०; महा ४२।१३८
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