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कला और स्थापत्य
२७३ अन्तःकक्ष (गर्भगृह) का उल्लेख उपलब्ध है। जिनेन्द्र देव आदि के चित्र भित्तियों पर निर्मित होते थे । द्वार अलंकृत होते थे एवं इसके दोनों किनारों पर कलश रहते थे। मन्दिर को सुन्दर ढंग से सुसज्जित किया जाता था ।' हरिवंश पुराण में यह उल्लेख आया है कि मन्दिर में एक प्राकार (कोट) होता था तथा चारों दिशाओं में एक-एक तोरण द्वार और एक विशाल गोपुर निर्मित होता था। चैत्यालय के आगे विशाल सभामण्डप, उसके सामने प्रेक्षागृह, उसके सम्मुख स्तूप, स्तूपों के आगे पद्मासित विराजमान प्रतिमाओं से सुशोभित चैत्यवृक्ष होते थे । जिनालय के पूर्व दिशा में एक विशाल सरोवर होता था ।२ हरिवंश पुराण के अनुसार जिनालयों में झरोखे, गहजाली, मोतियों की झालर, रत्न, मूंगा रूपी कमल एवं छोटी-छोटी घण्टियाँ होती थीं। पद्म पुराण में भी छोटी-छोटी घण्टियों के लगाने का उल्लेख आया है। पद्म पुराण के अनुसार जैन मन्दिर में एक बड़ा स्तूप निर्मित किया जाता था। जैनों में दिगम्बर सम्प्रदाय में स्तम्भ की प्रथा है। स्तम्भ को 'मानक-स्तम्भ' या 'मानव-स्तम्भ' संज्ञा से भी सम्बोधित करते हैं। बौद्धों में भी ऐसे स्तम्भ वर्तमान समय में परिलक्षित होते हैं। जैन पुराणों के वर्णनानुसार जैन मन्दिरों में वाद्य, गायन एवं नृत्य का कार्यक्रम होता था। वार-वनितायें मंगलगान एवं देवंगनाएँ नृत्य करती थीं।
पद्म पुराण के अनुसार राजगृह को शत्रुओं ने काम मन्दिर तथा विज्ञान के ग्रहण करने में तत्पर मनुष्यों ने विश्वकर्मा का मन्दिर समझा था। हरिवंश पुराण में मन्दिरों में छत्र, चमर, भृङ्गार, कलश, ध्वजा, दर्पण, पंखा और ठौनाइन आठ प्रसिद्ध मंगल द्रव्यों का प्रयोग किया जाता था। जैन पुराणों में आठ और दस
१. पद्म ७१।४३-४८,६५।३८-४२ २. हरिवंश ५।३६७-३७२ ३. वही ५।३६६ ४. पद्म ६५।४३ ५. वही ४०२८, ५३।२६४, ६०२६ ६. प्रभाशंकर ओ० सोमपुरा-वही, पृ० २०६
महा १६।१६७, ४७७; हरिवंश ५१३६४-३६५ ८. पद्म २१३६-४१ ६. छत्रचामरभृङ्गारैः कलशध्वजदर्पणैः।
व्यञ्जनैः सुप्रतीकैश्च प्रसिद्धैरष्टमङ्गालः ॥ हरिवंश २।७२ १०. महा २२।२६६; हरिवंश २०७३ ११. वही २२।२१६ वही ५७।४४
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