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धार्मिक व्यवस्था
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वाहनों आदि से युवा दीखते हैं, अतएव इन्हें कुमार कहा गया है। जैन पुराणों में इन देवताओं का क्रमबद्ध वर्णन अनुपलब्ध है। इनका यत्र-तत्र उल्लेख हुआ है ।२
(३) व्यन्तर देवता : व्यन्तर देवताओं में किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच आते हैं। राक्षस पंकबहुल क्षेत्र में रहते हैं और अन्य देवों के निवासस्थान असंख्य द्वीपों तथा सागरों से परे ऊपरी ठोस भाग में होता है ।' जैन पुराणों में इनका उल्लेख क्रमबद्ध ढंग से नहीं हुआ है । इनका यत्र-तत्र उल्लेख प्राप्त होता है । भूत-पिशाच आदि के विषय में वर्णित है कि ये रात में श्मशान भूमि में अपनी इच्छानुसार नृत्य करते थे। भूत-पिशाच की उपासना से पुत्र-प्राप्ति का उल्लेख हुआ है ।" जैन पुराणों में भी पिशाच का वर्णन उपलब्ध है। महा पुराण और हरिवंश पुराण में विवेचित है कि भूत-पिशाच से प्रेरित होने पर मंत्र से निग्रह करते थे।
(४) कल्पवासी देवता : हरिवंश पुराण के अनुसार कल्पवासी देव इन्द्रियादि के भेद से अनेक हैं और कल्पातीत देवता केवल अहमिद्र हैं।' महा पुराण के वर्णनानुसार इस वर्ग में दस प्रकार के देवताओं का उल्लेख हुआ है-इन्द्र, सामानिक, त्रायास्त्रिंश, पारिषद्, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य एवं किल्विषिक ।' इन्द्र के साथ इन्द्राणी का भी उल्लेख हुआ है । इन्द्र देवताओं का राजा होता था और उसके पास अपार ऐश्वर्य होता था।"
(५) अन्य देवी-देवता : आलोचित जैन पुराणों के परिशीलन एवं अन्य साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि जैनेतर वैदिक देवी-देवताओं को समाज में सर्वाधिक सम्मानित स्थान उपलब्ध था। जैनी आचार्यों ने भी इन देवी-देवताओं को अपने ग्रन्थों १. तत्त्वार्थसूत्र ४।११ २. महा ३३।१०७-१०६ ३. सर्वार्थसिद्धि ४।११ ४. महा २०१२१५, ३४।१८१, ३३।११० ५. वही ६२।२१४ ६. पद्म ४८।१६८; हरिवश ३०।४७; महा ४३।२६२ ७. वही ४६।२७; महा ११८६-८८ ८. हरिवंश ३।१५१ ६. महा २२।२२-३१, ३३।१०७-१०६ १०. वही १०।१८३-१८५, २३।१०६-११५
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