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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन महेन्द्र' : पद्म पुराण में महेन्द्रगिरि का पहला नाम दत्ती बताया गया है। इसको मलय पर्वत से सम्बन्धित करने से इसकी स्थिति केरल में बैठती है।
महामेरु (मेरु) : इसकी पहचान सर्वोत्तम पर्वत शिखर सिनेरु से की गयी है। यह सात दिव्य पर्वतमालाओं से परिवृत्त था । यह ६८,००० लीग ऊंचा था। डॉ० एस० एम० अली ने मेरु पर्वत की स्थिति ट्रांस-हिमालय को माना है, जो पामीर का शीर्ष है।
रामगिरि : रामगिरि (वंशाद्रि या रामटेक) महाराष्ट्र के नागपुर जिले
रूप्याचल : हरिवंश पुराण में इसे पश्चिम पुष्करार्ध के पश्चिम विदेह क्षेत्र में माना है।
रुक्मी : पद्म पुराण में वर्णित है कि रुक्मी जम्बूद्वीप में फैला है और दोनों समुद्रों को छूता है। हरिवंश पुराण में इसके आठ कूट (श्रेणियों) का उल्लेख है।"
_वक्षार : हरिवंश पुराण में विदेह क्षेत्रान्तर्गत सोलह वक्षार पर्वतों का उल्लेख मिलता है ।
विजयाई : जैन पुराणों में विजयार्ध पर्वत को भरत क्षेत्र के मध्य में पूर्व से पश्चिम विस्तृत तथा दोनों समुद्रों को स्पर्श करने वाला वर्णित किया है । इसका समीकरण विन्ध्याचल से करना समीचीन होगा।
विद्युत्प्रभ : हरिवंश पुराण में इसकी स्थिति मेरु पर्वत के दक्षिण-पश्चिम दिशा में बतायी गयी है।
विन्ध्याचल५ : हरिवंश पुराण में इसकी स्थिति नर्मदा को पार करने पर बतायी गयी है। विन्ध्याचल को विजयार्ध कहना उचित होगा। १. पद्म ४२; महा २६८८ ६. पद्म १०५।१५८ २. वही १५।११, १५॥१४,
१०. हरिवंश ५१०२-१०४ ३. वही २१३३-३५, ४।५; हरिवंश ११. पद्म ३४२; महा ६३।२०१
६।३५; महा १।१०, ४।५२, १२. हरिवंश ५।२२८-२३५ ६३११६३
१३. पद्म १५५६, ३४१, हरिवंश १।१०१ ४. लाहा-वही, पृ० ५८६
५।२०-३६; महा ४८१,५।२६१, ५. अली-वही, पृ० ४७, ५०-५२
१८।१४६, ६८७, ६२।२० ६. पद्म ४०।४५; हरिवंश ४६।१८ १४. हरिवंश ५२१२ ७. लाहा-वही, पृ० ५४६
१५. पद्म १४।२३०; महा २६८८ ८. हरिवंश ३४।१५
१६. हरिवंश ४५।११३
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