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________________ ४४२ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन महेन्द्र' : पद्म पुराण में महेन्द्रगिरि का पहला नाम दत्ती बताया गया है। इसको मलय पर्वत से सम्बन्धित करने से इसकी स्थिति केरल में बैठती है। महामेरु (मेरु) : इसकी पहचान सर्वोत्तम पर्वत शिखर सिनेरु से की गयी है। यह सात दिव्य पर्वतमालाओं से परिवृत्त था । यह ६८,००० लीग ऊंचा था। डॉ० एस० एम० अली ने मेरु पर्वत की स्थिति ट्रांस-हिमालय को माना है, जो पामीर का शीर्ष है। रामगिरि : रामगिरि (वंशाद्रि या रामटेक) महाराष्ट्र के नागपुर जिले रूप्याचल : हरिवंश पुराण में इसे पश्चिम पुष्करार्ध के पश्चिम विदेह क्षेत्र में माना है। रुक्मी : पद्म पुराण में वर्णित है कि रुक्मी जम्बूद्वीप में फैला है और दोनों समुद्रों को छूता है। हरिवंश पुराण में इसके आठ कूट (श्रेणियों) का उल्लेख है।" _वक्षार : हरिवंश पुराण में विदेह क्षेत्रान्तर्गत सोलह वक्षार पर्वतों का उल्लेख मिलता है । विजयाई : जैन पुराणों में विजयार्ध पर्वत को भरत क्षेत्र के मध्य में पूर्व से पश्चिम विस्तृत तथा दोनों समुद्रों को स्पर्श करने वाला वर्णित किया है । इसका समीकरण विन्ध्याचल से करना समीचीन होगा। विद्युत्प्रभ : हरिवंश पुराण में इसकी स्थिति मेरु पर्वत के दक्षिण-पश्चिम दिशा में बतायी गयी है। विन्ध्याचल५ : हरिवंश पुराण में इसकी स्थिति नर्मदा को पार करने पर बतायी गयी है। विन्ध्याचल को विजयार्ध कहना उचित होगा। १. पद्म ४२; महा २६८८ ६. पद्म १०५।१५८ २. वही १५।११, १५॥१४, १०. हरिवंश ५१०२-१०४ ३. वही २१३३-३५, ४।५; हरिवंश ११. पद्म ३४२; महा ६३।२०१ ६।३५; महा १।१०, ४।५२, १२. हरिवंश ५।२२८-२३५ ६३११६३ १३. पद्म १५५६, ३४१, हरिवंश १।१०१ ४. लाहा-वही, पृ० ५८६ ५।२०-३६; महा ४८१,५।२६१, ५. अली-वही, पृ० ४७, ५०-५२ १८।१४६, ६८७, ६२।२० ६. पद्म ४०।४५; हरिवंश ४६।१८ १४. हरिवंश ५२१२ ७. लाहा-वही, पृ० ५४६ १५. पद्म १४।२३०; महा २६८८ ८. हरिवंश ३४।१५ १६. हरिवंश ४५।११३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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