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भौगोलिक दशा
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'दन्ती : इसका दूसरा नाम महेन्द्र गिरि था । यह भरत क्षेत्र के अन्त में महासागर के निकट आग्नेय दिशा में था।'
दर्दुराद्रि' : डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल ने दर्दुर पहाड़ी को उटकमण्ड में स्थित बताया है।'
नाग' : नाग या नागा पहाड़ियाँ नागालैण्ड की पूर्वी सीमाएँ हैं ।"
निषध : डॉ० एस० एम० अली ने निषध के पश्चिमी भाग को हिन्दुकुश माना है।
नीलगिरि : इसे अंजनगिरि या अंजनक्षांक्षीधर भी कहा गया है। यह विदर्भ देशान्तर्गत गन्धिल के उत्तर में था ।१२
पारियान : डॉ० भण्डारकर ने इसे विन्ध्य पर्वतमाला का वह अंश माना है, जहाँ से चम्बल और बेतवा नदियां निकलती हैं । इसका विस्तार चम्बल नदी के उद्गम स्थल से कम्बात की खाड़ी पर्यन्त बताया है।" डॉ० रायचौधरी ने इसे भोपाल के पश्चिम में स्थित बताया है।५
पुष्पगिरि६ : यह आन्ध्र प्रदेश में कुड्डापा जिले में कोटलूरू के पास स्थित था ।"
मलय" : पाजिटर ने इसे नीलगिरि से कन्याकुमारी तक फैले हुए पश्चिमी घाट के एक खण्ड से समीकृत किया है। मलयकूट या श्रीखण्डाद्रि अथवा चन्दनाद्रि पर अगस्त मुनि का आश्रम था ।"
१. पद्म १५।१० २. वही १५१४ ३. वही १५।११
महा २६८६ ५. वासुदेव शरण अग्रवाल-वही,
पृ० १४५ ६. महा २६८८
लाहा-वही, पृ० ४०३ । पद्म १०५।१५७; हरिवंश ५/८०६०; महा ५।२६१, १२।१३८,
६३११६३ ६. एस० एम० अली-वही, पृ० ५४ १०. पद्म १०५।१५७; हरिवंश ५।१६१
११. पद्म ८।१६७ १२. महा ४१५२ १३. वही २६।६७ १४. नन्द लाल डे-वही, पृ० १४८ १५. अवध बिहारी लाल अवस्थी-प्राचीन
भारत का भौगोलिक स्वरूप,
पृ० २१ १६. पद्म ५३।२०१
- लाहा-वही, पृ० ३११, ६०१ १८. पद्म ३३।३१६; हरिवंश ५४१७४;
महा ३०।२६, ४३।३७० १६. लाहा-वही,पृ०२६१
१७.
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