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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
उपवासार्थ षष्ठ तथा त्रिदिवसीय उपवास के लिये अष्टम शब्द है। इस प्रकार दशम को आदि मानकर षड्मास के उपवास की व्यवस्था है।' इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है कि साधारणतः दिन में कोई मनुष्य दो बार भोजन ग्रहण करता है किन्तु उपवास रहने पर मनुष्य को उपवास से पूर्व दिन में एक बार भोजन करने के पश्चात् उपवास का दिन मिलाकर आगामी दिन क्रमानुसार चतुर्थ वेला होने पर वह भोजन करता है अर्थात् वह चार बार का भोजन ग्रहण नहीं करता है। अतः इसे चतुर्थक कहा है। इसी प्रकार अन्य शब्दों का भी आशय समझना चाहिए। जैन परम्परा के अनुसार उपवास का तात्पर्य निर्जला से ही है अर्थात् भोजन के अतिरिक्त जल पीना भी त्याज्य माना जाता था। यदि मनुष्य उपवास काल में जल ग्रहण कर लेता है तो उपवास खण्डित हो जाता है। जैन पुराणों में अधोलिखित व्रतोपवास का वर्णन मिलता है :
__ आचाम्लवर्धमानविधि,२ चान्द्रायणविधि,' सप्तसप्तमतपोविधि, अष्टाष्टम से द्वात्रिंशद्वात्रिंशद्विधि, जिनेन्द्र गुणसम्पत्तिविधि, श्रुतविधि; दर्शनशुद्धविधि, तपः शुद्धविधि, चारित्रशुद्ध विधि, एककल्याणकविधि," पञ्चकल्याणकविधि,२ शीलकल्याणकविधि, भावनाविधि,"पञ्चविंशति कल्याण भावनाविधि,५ दुःखहरणविधि,१६ कर्मक्षयविधि, नन्दीश्वर व्रतविधि,८ मेरुपंक्तिव्रतविधि, विमानपंक्तिविधि,२° शातकुम्भविधि,२१ सिंहनिष्क्रीडितविधि,२२ सर्वतोभद्र, २" नवान्तभद्र, महासर्वतोभद्र,२५
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१. एकश्चतुर्थकाभिरव्यो द्वौ षष्ठं तु त्रयोऽष्टमः ।।
दशमाद्यास्तथा वेद्याः षण्मास्यन्तोपवासकाः ॥ हरिवंश ३४।१२५ २. हरिवंश ३४१६४-६६ महा ७।४२-४३, ७७७,
१४. हरिवंश ३४।११२ हरिवंश ३४१६०
१५. वही ३४।११३-११६ हरिवंश ३४१६१, महा ६७६ १६. वही ३४।११८-१२० वही ३४।६२-६४
१७. वही ३४।१२१; महा ७।१८ वही ३४।१२२; महा ६।१४१ १८. वही ३४१८४
वही ३४१६७; वही ६।१४६-१५१ १६. वही ३४१८५ __ वही ३४१६८
२०. वही ३४८६ ६. वही ३४१६६; महा ७७७ २१. वही ३४१८७-८६ १०. वही ३४।१००-१०६
२२. वही ३४१७८-८३; महा ७।२३ वही ३४|११०
२३. वही ३४१५२-५५; वही ७।२३ १२. वही ३४।१११
२४. वही ३४१५६ १३. वही ३४।११२
२५. वही ३४।५७-५८
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