Book Title: Jain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Author(s): Deviprasad Mishra
Publisher: Hindusthani Academy Ilahabad

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Page 461
________________ भौगोलिक दशा ४२७ विराट' : विराट नगर को मत्स्य-नगर से भी सम्बोन्धित करते हैं। यह विराट की राजधानी थी। यह दिल्ली से एक सौ पाँच मील दक्षिण-पश्चिम में और जयपुर से इकतालिस मील उत्तर में स्थित है ।२ वीतशोक : गुणभद्र ने जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर गन्धमालिनी देश में वीतशोक नगर बताया है, दूसरे स्थान पर उन्होंने पुष्कवर द्वीप में पश्चिम मेरु पर्वत से पश्चिम की ओर सरिद् देश के मध्य इसकी . स्थिति का उल्लेख किया है और तीसरे स्थान पर जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व . कच्छकावती देश में वीतशोक नगर का वर्णन किया है। राजधानी के रूप में वीतशोक का वर्णन मिलता है। वीतभय : सिन्धु देश में इस नगर के विद्यमान होने का उल्लेख मिलता है। रथनपुर : इसे रथनूपुर चक्रवाल संज्ञा से भी सम्बोधित किया गया है, जो विजया पर्वत के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित था। रत्नपुर : पुष्करार्ध द्वीप के पूर्व मेरु की ओर सीता नदी के दक्षिणी तट पर वत्सकावती नामक देश में रत्नपुर नामक नगर अवस्थित था। अन्यत्र इसकी स्थिति भरत क्षेत्र के मलय राष्ट्र में कथित है।" इसकी स्थिति का तादात्म्य मध्य प्रदेश में विलासपुर से सोलह मील उत्तर में बताया गया है ।१२ रत्नसंचय : पूर्व विदेह क्षेत्र में मंगलावती देश में रत्नसंचय नगर का उल्लेख है ।१३ इसका अन्य नाम रत्नसंचया भी उपलब्ध होता है । ४. १. हरिवंश ४६।२३ २. लाहा-वही, पृ० ५३५ ३. महा ५६।१०६ ४. वही ६२।३६४ ५. वही ६६०२ ६. पद्म २०१५; हरिवंश श२६२ ७. हरिवंश ४४।३३ पद्म १३१६६,६४६ ६. हरिवंश ६१३३; महा १६१८०, ६२।२५, ६२।६६, पद्म ३१३१३-३१४ १०. महा ५८।२, १६८७, ६१।१३; पद्म ६७, ६३।१ ११. वही ६७।६० १२. लाहा-वही, पृ० ५४६ १३. महा ७६०, ५४।१३०; पद्म १३१६२, २०१२ १४. हरिवंश ५।२६० ७१।३१३; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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