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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
पुनरावृत्ति यहाँ नहीं करनी है । गृहस्थों के अन्य धर्म, दान, पूजा, देवी-देवताओं की मान्यता, व्रतोपवास आदि थे । इनका वे पालन करते थे । इनका परिशीलन यथास्थान प्रस्तुत किया गया है ।
५. देवता : देव शब्द का प्रयोग वीतरागी भगवान् अर्थात् अहं सिद्ध के लिए और देव - गति संसारी जीवों के लिए हुआ है । इसके अतिरिक्त पंच परमेष्ठी, चैत्य, चैत्यालय, शास्त्र तथा तीर्थक्षेत्र – ये सब देवता मान्य हैं । सन्मार्ग पर चलते हुए जिन्होंने तप किया था, वे देवगति उसके फलस्वरूप सुख भोगते हैं । इनका विवरण, स्थान, आयु आदि भिन्न-भिन्न होती है ।"
[i] देवताओं के प्रकार : पद्म पुराण में विवृत है कि देवताओं के चार भेद हैं- ज्योतिषी, भवनवासी, व्यन्तर और कल्पवासी । अपने-अपने कर्मों के अनुसार संसार के प्राणी इनमें जन्म ग्रहण करते हैं । विद्याधरों के निवास स्थल से १० योजन ऊपर गान्धर्व और किन्नर देश के हजारों नगर स्थित हैं ।
(१) ज्योतिषी देवता : हरिवंश पुराण में उल्लिखित है कि मानुषोत्तर पर्वत से ५०,००० योजन आगे चलकर सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिष वलय के रूप में स्थित हैं । उसके आगे एक-एक लाख योजन चलकर ज्योतिषियों के वलय हैं । प्रत्येक वलय में चार-चार सूर्य-चन्द्र हैं और एक दूसरे की किरणें परस्पर संयुक्त हैं । इस वर्ग के अन्तर्गत पाँच प्रकार के देवता आते हैं-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र तथा प्रकीर्णक तारे । ये सब देव ज्योतिर्मय हैं । इसलिए इनकी ज्योतिषी यह सामान्य संज्ञा सार्थक है ।" इनमें सूर्यपूजा का उल्लेख उपलब्ध है !"
(२) भवनवासी देवता : इनके अन्तर्गत दस देवता आते हैं- असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधि - कुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार। चूंकि ये देवगण अपने वस्त्राभूषणों, शस्त्रास्त्रों,
१. हरिवंश ३।१४१-१८०
२.
ज्योतिषा भावनाः कल्पा व्यन्तराश्च चतुर्विधाः ।
देवा भवन्ति योग्येन कर्मणा जन्तवो भवे ॥ पद्म ३८२, ३।१६२-१६३,
१४/४७-४८
३.
पद्म ३।३१०
४. हरिवंश ६।३१-३४, ३।१५१; महा ५४ । २६७
५. तत्त्वार्थसूत्र ४।१२; तिलोयपण्णत्ति ७७,७१३८
६.
महा ७३।६०
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