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ललित कला
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(v) दुन्दुभि' : दुन्दुभि का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होता है । इसका अर्थ हिन्दी शब्द सागर में नगाड़ा और धौंसा है । इसको नगाड़ा कह सकते हैं, धौंसा नहीं । यह तबले की भाँति दो नगों से निर्मित होता है । बड़े नग से गम्भीर ध्वनि निकलती और छोटे नग की ध्वनि दूर तक प्रसारित होती है । यह द्वय शंक्वाकार लकड़ियों से बजाया जाता है । नगाड़ा एवं नगड़िया शब्द भी इसके लिए व्यवहृत हैं । उत्तर प्रदेश में इसका उपयोग नौटंकी में अधिकतर किया जाता है । इसका प्रयोग युद्ध एवं शुभावसरों पर होता है । यदि यह शहनाई सहित बजती है तो इसे नौबत संज्ञा से सम्बोधित करते हैं ।
संगीत - पारिजात के अनुसार पटह का तात्पर्य की भाँति का वाद्य है । यह पतले या मोटे हाथ से बजाया जाता है । इसका का होता है - देशी तथा मार्गी ।*
(vi) पटह: हिन्दी शब्द सागर में पटह का अर्थ नगाड़ा और दुन्दुभी है, परन्तु ढोलक से है । यह डेढ़ हाथ लम्बा भेरि चमड़े से मढ़ा जाता है। इसे लकड़ी या उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में हुआ है । यह दो प्रकार
(vii) पणव' : मृदंग के समान यह प्राचीन कालीन अवनद्ध वाद्य है । यह सोलह अंगुल लम्बा, भीतर की ओर मध्यभाग दबा, आठ अंगुल विस्तरित तथा दोनों मुख पाँच अंगुल के होते हैं । इसके काष्ठ की मोटाई आधे अँगूठे के सदृश होती है और अन्तः भाग चार अंगुल व्यास का खोखला होता है । इसके दोनों मुख कोमल चमड़े से मढ़े जाते हैं तथा इसे सुतली से कसा जाता है । सुतली के कसाव को ढीला रखते हैं । इसे प्राचीन एवं आधुनिक काल में हुडुक नाम से अभिहित करते हैं, जब कि मध्य काल में इसे आवाज नाम दिया गया था ।
(viii) पाणिघ (तबला) " इसका प्रयोग प्राचीन ग्रन्थों में अनुपलब्ध है । संगीतसार के अनुसार प्राचीन हुडुक्का का विकसित रूप ही आधुनिक तबला है । तबला वादन में पंजा से कम ऊँगलियों से अधिक काम लिया जाता है ।
१.
पद्म ८०५४; हरिवंश ८ । १४१; महा १३ | १७७, १५।१४७ २. लालमणि मिश्र - वही, पृ० ७६-७८
३.
पद्म ८०।५८, ८२।३० ; हरिवंश ८।१५७; महा १५।१४७, २३६३ लालमणि मिश्र - वही, पृ० ७६ ८०
४.
५. हरिवंश २२ १२; महा १२ २०७, २३६२
६. लालमणि मिश्र - वही, पृ० ७८ ७६
७.
पद्म १७।२७५; हरिवंश ११।१२०
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