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ललित कला
ललित कला, (८) काष्ठ चित्र, (६) लौकिक चित्र ।' इन सभी वर्गीकरणों का उल्लेख जैन पुराणों में अनुपलब्ध है, तथापि इनसे सम्बन्धित उल्लेख यत्र-तत्र उपलब्ध हैं। महा पुराण में भित्तिचित्र,२ चित्रशाला' एवं चित्रपट का उल्लेख हुआ है । पद्म पुराण में वंशस्थल पर्वत पर धूलि चिन्न निर्मित करने का वर्णन उपलब्ध है।"
५. विशेषतायें : जैन पुराणों में उल्लिखित चित्रकला की समीक्षा करने पर ज्ञात होता है कि उनमें सभी विशेषतायें उपलब्ध हैं। महा पुराण के वज्रसंघ तथा श्रीमती के पटचित्रों की लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई का प्रमाण समानुपाती था । इस चित्र में रस तथा भाव दोनों ही का रमणीय अंकन उपलब्ध है। इसी पुराण में चित्र में आकृति के साथ अनेक गुप्त और रहस्यपूर्ण विषयों का भी सन्निवेश किया गया है। पद्म पुराण में नारद द्वारा निर्मित सीता के भव्य-चित्र का वर्णन है, जो देखने में सीता की साक्षात् सजीवाकृति प्रतीत होती थी। यही कारण था कि सीता के चित्र को देखकर भामण्डल कामासक्त होकर मोहित हो गया था। महा पुराण में उल्लिखित चित्रों से ज्ञात होता है कि कपोलों एवं गण्डस्थलों पर की गई चित्रकारी अनेक रहस्यपूर्ण आन्तरिक भावनाओं को प्रकट करती थी। इसी पुराण में कल्पवृक्षों की पंक्तियाँ, विकसित कमलयुक्त सरोवर, मनोहर दोलागृह एवं अत्यधिक सुन्दर कृत्रिम पर्वत का चित्रण उपलब्ध है। अन्य चित्र में सरोवर के तटीय भाग पर मणियाँ बिखरी हुई हैं, इसके दूसरी ओर मेरु पर्वत पर्दे के रूप में प्रदर्शित है। यहाँ पर क्रीड़ारत दम्पत्ति को चित्रित किया गया है ।" उक्त ग्रन्थ में ललिताङ्गदेव के जीवन विषयक पूर्ण चित्रांकन का वर्णन उपलब्ध है । १२ अन्यत्र प्रणय-कुपित नायिका के भव्य चित्रण का वर्णन प्राप्य है। नायिका (स्वयंप्रभा) पराङ्गमुख बैठी हुई है और ऐसी प्रतीत हो रही है, मानो वायु के आघात से आहत लता कल्पवृक्षों के समीप असहाय पड़ी हुई है ।१३
१. सुशीला देवी जैन-जन चित्रकला : संक्षिप्त सर्वेक्षण, गुरुगोपाल दास वरैया
स्मृतिग्रंथ, सागर, १६६७, पृ० ६१२ २. महा ६।१८१
८. पद्म २८1१६-२७ ३. वही ७।११७
६. महा ७।१३४ ४. वही ७।११८-१२०
१०. वही ७।१२५ ५. पद्म ४०१७
११. वही ७/१२७-१३३ ६. महा ७।११६-१२२
१२. वही ७१२३-१३० ७. वही १६।१२२-१२६
१३. वही ७।१२६
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