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जैनपुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन कृषि को सुव्यवस्थित करने एवं अधिक उपज के लिए राज्य की ओर से सहायता प्रदान करने की भी व्यवस्था थी। महा पुराण के अनुसार राजा कृषि की उन्नति के लिए खाद, कृषि उपकरण, बीज आदि प्रदान कर खेती कराता था । इसी पुराण में उल्लेख आया है कि खेत राजा के भण्डार के समान थे। जैन पुराणों में कृषक को कर्षक और हलवाहक को कीनाश शब्द से सम्बोधित किया गया है । महा पुराण के अनुसार कृषक भोलेभाले, धर्मात्मा, वीतदोष तथा क्षुधा-तृषा आदि क्लेशों के सहिष्णु तथा तपस्वियों से बढ़कर होते थे। कृषक हल, बैल और कृषि के अन्य औजारों के माध्यम से खेती करते थे । खेत की उत्तम जुताई कर, उसमें उत्तम बीज एवं खाद का प्रयोग करते थे। र० गंगोपाध्याय ने एग्रिकल्चर एण्ड एग्रीकल्चरिस्ट इन ऐंशेण्ट इण्डिया में गोबर की खाद को खेती के लिए अत्यन्त उपयोगी माना है। इसके उपरान्त उसकी सिंचाई की आवश्यकता पड़ती थी। महा पुराण में सिंचाई के दो प्रकार के साधनों का उल्लेख हुआ है : अदेवमातृकानहर, नदी आदि कृत्रिम साधन से सिंचाई व्यवस्था और देवमातृका-वर्षा के जल से सिंचाई व्यवस्था । महा पुराण के वर्णनानुसार वर्षा समयानुकूल और पर्याप्त मात्रा में होती थी, जिससे खेती उत्तम होती थी। कुआँ, सरोवर", तडाग" और वापी के जल को सिंचाई के लिए प्रयोग करते थे । जैन पुराणों के कथनानुसार उस समय १. देशेऽपि कारयेत् कृत्स्ने कृषि सम्यक्कृषीबलः । महा ४२।१७७ २. महा ५४।१४ ३. पद्म ६।२०८; महा ५४।१२
वही ३४।६० ऋजवो धार्मिकावीतदोषा क्लेशसहिष्णवः ।
कर्षकाः सफलारम्भाः तप. स्थांश्चातिशेरते ॥ महा ५४।१२ ६. लल्लनजी गोपाल-वही, पृ० २६०
अदेवमातृका: केचिद् विषयाः देवमातृका । परे साधारणाः केचिद् यथास्वं ते निवेशिताः ॥ महा १६।१५७ महा ४७६, तुलनीय-एपि० इण्डि०, जिल्द २०, पृ० ७ पर सिंचाई के
साधनों पर प्रकाश पड़ता है। ६. महा ४७२ १०. वही ५।२५६; पद्म २।२३ ११. वही ४७२ १२. वही ५।१०४
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