________________
३२६
जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
उस समय कुम्भकार, चित्रकार, लोहार ( कर्मकार ), नापित ( काश्यप), वस्त्रकार आदि शिल्प द्वारा जीविकोपार्जन करने वालों में प्रमुख थे । अन्य शिल्पकारों में तेली थे, जो तेल निकाल कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे । हरिवंश पुराण में तेल पेरने के यन्त्र का उल्लेख उपलब्ध है । कंसकार कांस के बर्तन निर्मित करते थे । व्याख्या प्रज्ञप्ति में कंसकार की गणना नौ कारुओं के अन्तर्गत हुई है । प्राचीन काल से ही इस देश में हाथीदाँत का काम उन्नति के शिखर पर था। हाथीदाँत से विभिन्न प्रकार के खिलौने आदि निर्मित किये जाते थे । इस कार्य को अधिकतर पुलिन्द नामक आदिम जातियाँ किया करती थीं। कुछ आर्य जातियाँ भी हाथीदाँत का काम करती थीं । हड्डी, सींग और शंख से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता था । वास्तुकर और तक्षक मिलकर मकान, भवन, प्रासाद, नगर, तालाब, मन्दिर, मूर्तियाँ, जलाशय आदि का निर्माण करते थे । समाज में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था । ये जल के भीतर खम्भे निर्मित कर पुल का निर्माण करते थे । पुल के द्वारा आवागमन में सुविधा तथा विकास की गति द्रुति होती है । २ जैन पुराणों एवं जैनागमों में बहुत से खनिज पदार्थों का उल्लेख मिलता है, जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि उस समय खनन् -विद्या का विकास भलीभाँति हुआ था । खनिज पदार्थों से विभिन्न प्रकार की वस्तुयें निर्मित की जाती थीं । बृहत्कल्पभाष्य टीका में धातुओं के उत्पत्ति स्थल को 'आकर' संज्ञा प्रदत्त है । इन आकरों से लोहा, ताँबा, जस्ता, शीशा, रजत, स्वर्ण, मणि, रत्न, वज्र, लवण (नमक), ऊस (साजीमाटी), गेरू, हरताल, हिंगुलक, ( सिंगरफ), मणसिल ( मनसिल ), सासग ( पारा), सेडिय ( सफेद मिट्टी), सौरट्ठिय और अंजन आदि निकाले जाते थे । समाज के अधिकांश लोग इन धन्धों में व्यस्त रहते थे । सुवर्णकार मणि, रत्न, सुवर्ण एवं चाँदी से आभूषण आदि का निर्माण करते थे । स्त्री और पुरुष दोनों आभूषण प्रेमी होते थे । इसलिए बहुसंख्यक आभूषणों के निर्माण का उल्लेख मिलता है । स्वर्णकार बेईमान भी होते थे । निशीथचूर्णी में संदर्भ मिलता है कि वे कुण्डल ( मोरंग ) में ताँबा मिला देते थे । उस समय धातुओं से मुद्रायें निर्मित की जाती थीं । इन्हें निर्मित करने के लिए राजकीय टकसाल होते थे । ऐसे शिल्पकारों का भी उल्लेख मिलता है, जो हाथ से विभिन्न प्रकार के सामान निर्मित कर जीवकोपार्जन करते थे । इनमें से मुख्यतः चटाई बनाने वाले ( कटादिकार), मुंजपादुका निर्माता (मुंजपादुकाकार), रस्सी बटने वाले (बरुड़), ताड़ के पत्तों से पंखे बनाने वाले ( तालवृन्तकार), बाँस हरिवंश ११।६३
वही २७।७१; महा १६।१८२, ३२।२६
१.
२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org