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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन कुमुम्भ, कपास, पुण्ड्र (पौड़ो), इक्षु (ईख), शाक, आदि ।'
[i] पशुपालन : आलोचित जैन पुराणों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उस समय पशुपालन उन्नति दशा में था। पशुपालन द्वार। लोग अपनी जीविका चलाते थे। पद्म पुराण के रचना काल में मनुष्य की सम्पन्नता एवं धनाढ्यता का मापदण्ड पशुओं की संख्या पर आधारित था ।। गाय और भैंसों से युक्त परिवार को महा पुराण में सुखी माना गया है। गाय, भैंस, बैल आदि पशुओं की रक्षा करने की व्यवस्था का वर्णन हरिवंश पुराण में उपलब्ध है। अन्यत्र गाय, भैंस एवं बकरी के दूध को उसके स्वभाव के अनुसार माधुर्य गुण से सम्पन्न वर्णित है।" जैन पुराणों में गाय को विशेष स्थान प्रदत्त है और घोड़े तथा हाथी को सवारी के योग्य कथित है।' हरिवंश पुराण के वर्णनानुसार चारागाहों (दविय) में गाय, बैल, भेड़, बकरी आदि पशु चरा करते थे। पद्म पुराण में भैसों की पीठ पर आरुढ़ अहिर ग्वाले गाना गाते एवं उनकी रक्षा करते हुए प्रदर्शित किये गये हैं। पद्म पुराण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उस समय घी, दूध, दही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था तथा उनका प्रयोग भोजन में होता था, जिससे भोजन स्वादिष्ट हो जाता था। इससे स्पष्ट होता है कि गाय, भैंस, बकरी और भेड़ों का दूध प्रयोग में आता था । विभिन्न देशों के घी एवं दूध के स्वाद का उल्लेख हरिवंश पुराण में आया है। कलिंग देश की गाय का दूध और अपरान्त देश का घी बहुत स्वादिष्ट होता था।उक्त कथन की पुष्टि
१ पद्म २।३-८; महा ३।१८६-१८८; हरिवंश १४।१६१-१६३, १६३१८, ५८।३२,
५८।२३५; तुलनीय-जगदीश चन्द्र जैन-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० १२३-१३०; बी०एन०एस० यादव-सोसाइटी एण्ड कल्चर इन द
नार्दर्न इण्डिया, पृ० २५६; सर्वानन्द पाठक-विष्णु पुराण का भारत, पृ० १६८ . २. पद्म ४१६३-६४, ८३।१५
वही ८३।२० ४. हरिवंश ६३६ ५. वही ५८।२११ ६. पद्म २।१०-२४, ४।८; हरिवंश ८।१३४-१३६ ७. हरिवंश ३५१५०-५३; तुलनीय-अर्थशास्त्र २।२६; मनु ८२३७; याज्ञवल्क्य
३।१६७; मत्स्य पुराण २२७४२४ ८. पद्म २।१० ६. वही ३४।१३-१६ १०. हरिवंश १८।१६१-१६३
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