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• जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
निर्मित हुआ है। अच्छी तरह से त्याग करना पारिव्रज्य हुआ । जो सब कुछ अच्छी तरह से त्याग दे उसे पारिव्रजक कहते हैं । ये गेरुआ वस्त्र धारण करते थे । एक दण्ड सदैव अपने साथ रखते थे, स्नानादि से पवित्र होते थे तथा शिर मुड़ाये रहते थे । '
(३) ऋषि : 'ऋषि' धातु से 'इ' प्रत्यय होने पर ऋषि शब्द की उत्पत्ति हुई है। ऋषि का अर्थ ज्ञानशील व्यक्ति होता है । यथार्थ में जो जीवों की सुरक्षा में तत्पर थे, वे ही ऋषि कहलाते थे । २ ऋद्धि पुरुष को ऋषि कहा गया है ।
(४) भिक्षुक : 'भिक्षु' धातु से 'उक' प्रत्यय होकर भिक्षुक शब्द निर्मित हुआ है । भिक्षुक का शाब्दिक अर्थ भिक्षा माँगने वाला व्यक्ति होता है । पद्म पुराण में कथिक है कि गृहत्यागी एवं भिक्षा से भोजन करने के कारण भिक्षुक कहलाते थे ।
(५) श्रमण : कर्मों के नष्ट करने के कारण इनका नामकरण श्रमण किया गया था । "
(६) क्षपण : क्षीण राग और क्षमा सहित हो तप द्वारा अपने को कृश करने से क्षपण नाम प्रदत्त किया गया था ।
( ७ ) संन्यासी : प्रायोपगमन नामक संन्यास धारण करने से संन्यासी संज्ञा से अभिहित किया गया था । "
(८) अमोघवादी मुनि : ये मुनि अमोघ परम्परा का निर्वाह करते थे । '
(e) सिद्ध: सिद्धों में अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य और अनन्त सुख विद्यमान रहता था । "
१. हरिवंश ६ । १२७
२. ऋषयस्ते हि भाष्यन्ते ये स्थिताजन्तुपालने । पद्म ११।५८ चारित्रसार ४७ १; धवला पुस्तक ७ २०; प्रवचनसार २४६
३.
४.
पद्म १०६ ६०
५. वही १०६६०
६. वही १०६ ८७
७. हरिवंश ६१६३ ८. वही ४२।५३
€. पद्म १०५।१६१
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