________________
धार्मिक व्यवस्था
३७७
(२) समाधान या समाधि : उत्तम परिणामों में चित्त का स्थिर रहना है, उसे यथार्थ में समाधान या समाधि संज्ञा प्रदत्त है अथवा पंच परमेष्ठियों के स्मरण को भी समाधि अभिधा प्रदत्त है ।"
(३) प्राणायाम : मन, वचन तथा काय इन तीनों योगों का निग्रह करना अथवा शुभ भावना रखना प्राणायाम का बोधक है । २
( ४ ) धारणा : शास्त्रों में वर्णित बीजाक्षरों की अवधारणा को धारणा कथित है।
(५) आध्यान : अनित्यत्व आदि भावनाओं का बार-बार चिन्तवन करना आध्यान का बोधक होता है ।*
( ६ ) ध्येय : मन तथा वचन के अगोचर जो अतिशय उत्कृष्ट शुद्ध आत्मतत्त्व है उसे ध्येय नाम प्रदत्त है । "
(७) स्मृति : जीव आदि तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप का स्मरण करना अथवा सिद्ध तथा परमेष्ठी के गुणों का स्मरण करना स्मृति कहलाती है ।"
(८) ध्यान का फल : ध्यान करने वाले योगी के चित्त के संतुष्ट होने से जो परमानन्द की प्राप्ति होती है, वही सर्वाधिक ऐश्वर्य है, फिर योग से होने वाली अनेक ऋद्धियों का तो कहना ही क्या है ? अर्थात् ध्यान के प्रभाव से हृदय में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है वही ध्यान का सर्वोत्कृष्ट फल है ।"
(६) ध्यान का बीज : 'अहं, अर्हद्भयो नमः नमः सिद्धेभ्यः, नमोऽर्हत्परत्मेष्ठिने और अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यो नमः - ये ध्यान के बीजाक्षर हैं । इनका ध्यान करने से मोक्ष की उपलब्धि होती है ।"
१. यत्सम्यक्परिमाणेषु चित्तस्या धानमञ्जसा । स समाधिरिति ज्ञेयः स्मृतिर्वा परमेष्ठिनाम् ॥ प्राणायामो भवेद् योगनिग्रहः शुभभावनः ।
महा २१।२२६ वही २१।२२७
धारणा
श्रुतिनिर्दिष्टबीजानामवधारणम् । वही २१।२२७
आध्यानं स्यादनुध्यानमनित्यत्वादिचिन्तनैः । वही २१।२२८ ५. ध्येयं स्यात् परमं तत्त्वमवाङ्मनसगोचरम् । वही २१।२२८ ६. स्मृतिर्जीवादितत्त्वानां याथात्म्यानुस्मृतिः स्मृता ।
गुणानुस्मरणं वा स्यात् सिद्धार्हत्परमेष्ठिनाम् || वही २१।२२६ योगिनः परमानन्दो योऽस्यस्याच्चित्त निर्व ते ।
स एवैश्वर्य पर्यन्तो योगजाः किमुतर्द्धयः ।। वही २१।२३७ महा २१।२३१-२३६
२.
३.
४.
७.
८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org