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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन परिग्रहत्याग महावत : पांचों इन्द्रियों के बाह्य एवं आभ्यान्तर सचित्त-अचित्त पदार्थों में आसक्ति का परित्याग करना परिग्रह-त्याग (अपरिग्रह) महाव्रत का बोधक है।
__ महा पुराण में उपर्युक्त-अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रहमहाव्रतों के साथ छठा रात्रिभोजनत्याग को महाव्रत की संज्ञा प्रदत्त है।
(२) पाँच समिति : पाँच समितियों के अन्तर्गत ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण एवं उत्सर्ग को सम्मिलित करते हैं :
ईर्या समिति : नेत्रगोचर जीवों के समूह को बचाकर गमन करना ईर्या समिति कहलाती है । इससे व्रतों में शुद्धता आती है।'
__ भाषा समिति : सदा कर्कश और कठोर वचन का परित्याग करना भाषा समिति है।
एषणा समिति : शरीर की स्थिरता के लिए पिण्डशुद्धिपूर्वक मुनि के आहार ग्रहण को एषणा समिति कथित है।"
आदान निक्षेपण समिति : देखकर योग्यवस्तु का रखना और उठाना आदान निक्षेपण समिति कहलाती है।
उत्सर्ग समिति : प्रासुक भूमि पर शरीर के भीतर का मल छोड़ना उत्सर्ग (प्रतिष्ठापन) समिति का बोधक है।'
(३) गप्ति : मन, वचन एवं काय की प्रवृत्ति का सर्वथा अभाव हो जाना अथवा उसमें कोमलता आ जाना—ये तीन गुप्ति हैं। इनका पालन (आचरण) बड़े आदर से करना चाहिए। .
१. हरिवंश २०११६५; महा २।१२१; पद्म ४।४८ २. अहिंसा सत्यमस्त्येयं ब्रह्मचर्य विमुक्तताम् ।
राज्यभोजनषष्ठानि व्रतान्येतान्यभावयन् ॥ महा ३४।१६६ ३. हरिवंश २।१२२; पद्म १४।१०८; महा ११।६५ ४. वही २।१२३; वही १४।१०८; वही १११६५ ५. वही २।१२४; वही १४।१०८; वही ११।६५ ६. वही २।१२५; वही १४।१०८; वही ११।६५ ७. वही २।१२६; वही १४।१०८; वही १११६५ ८. पद्म १४।१०६; हरिवंश २।१२७; महा १११६५
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