SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७२ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन परिग्रहत्याग महावत : पांचों इन्द्रियों के बाह्य एवं आभ्यान्तर सचित्त-अचित्त पदार्थों में आसक्ति का परित्याग करना परिग्रह-त्याग (अपरिग्रह) महाव्रत का बोधक है। __ महा पुराण में उपर्युक्त-अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रहमहाव्रतों के साथ छठा रात्रिभोजनत्याग को महाव्रत की संज्ञा प्रदत्त है। (२) पाँच समिति : पाँच समितियों के अन्तर्गत ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण एवं उत्सर्ग को सम्मिलित करते हैं : ईर्या समिति : नेत्रगोचर जीवों के समूह को बचाकर गमन करना ईर्या समिति कहलाती है । इससे व्रतों में शुद्धता आती है।' __ भाषा समिति : सदा कर्कश और कठोर वचन का परित्याग करना भाषा समिति है। एषणा समिति : शरीर की स्थिरता के लिए पिण्डशुद्धिपूर्वक मुनि के आहार ग्रहण को एषणा समिति कथित है।" आदान निक्षेपण समिति : देखकर योग्यवस्तु का रखना और उठाना आदान निक्षेपण समिति कहलाती है। उत्सर्ग समिति : प्रासुक भूमि पर शरीर के भीतर का मल छोड़ना उत्सर्ग (प्रतिष्ठापन) समिति का बोधक है।' (३) गप्ति : मन, वचन एवं काय की प्रवृत्ति का सर्वथा अभाव हो जाना अथवा उसमें कोमलता आ जाना—ये तीन गुप्ति हैं। इनका पालन (आचरण) बड़े आदर से करना चाहिए। . १. हरिवंश २०११६५; महा २।१२१; पद्म ४।४८ २. अहिंसा सत्यमस्त्येयं ब्रह्मचर्य विमुक्तताम् । राज्यभोजनषष्ठानि व्रतान्येतान्यभावयन् ॥ महा ३४।१६६ ३. हरिवंश २।१२२; पद्म १४।१०८; महा ११।६५ ४. वही २।१२३; वही १४।१०८; वही १११६५ ५. वही २।१२४; वही १४।१०८; वही ११।६५ ६. वही २।१२५; वही १४।१०८; वही ११।६५ ७. वही २।१२६; वही १४।१०८; वही १११६५ ८. पद्म १४।१०६; हरिवंश २।१२७; महा १११६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy