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________________ ३६६ • जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन निर्मित हुआ है। अच्छी तरह से त्याग करना पारिव्रज्य हुआ । जो सब कुछ अच्छी तरह से त्याग दे उसे पारिव्रजक कहते हैं । ये गेरुआ वस्त्र धारण करते थे । एक दण्ड सदैव अपने साथ रखते थे, स्नानादि से पवित्र होते थे तथा शिर मुड़ाये रहते थे । ' (३) ऋषि : 'ऋषि' धातु से 'इ' प्रत्यय होने पर ऋषि शब्द की उत्पत्ति हुई है। ऋषि का अर्थ ज्ञानशील व्यक्ति होता है । यथार्थ में जो जीवों की सुरक्षा में तत्पर थे, वे ही ऋषि कहलाते थे । २ ऋद्धि पुरुष को ऋषि कहा गया है । (४) भिक्षुक : 'भिक्षु' धातु से 'उक' प्रत्यय होकर भिक्षुक शब्द निर्मित हुआ है । भिक्षुक का शाब्दिक अर्थ भिक्षा माँगने वाला व्यक्ति होता है । पद्म पुराण में कथिक है कि गृहत्यागी एवं भिक्षा से भोजन करने के कारण भिक्षुक कहलाते थे । (५) श्रमण : कर्मों के नष्ट करने के कारण इनका नामकरण श्रमण किया गया था । " (६) क्षपण : क्षीण राग और क्षमा सहित हो तप द्वारा अपने को कृश करने से क्षपण नाम प्रदत्त किया गया था । ( ७ ) संन्यासी : प्रायोपगमन नामक संन्यास धारण करने से संन्यासी संज्ञा से अभिहित किया गया था । " (८) अमोघवादी मुनि : ये मुनि अमोघ परम्परा का निर्वाह करते थे । ' (e) सिद्ध: सिद्धों में अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य और अनन्त सुख विद्यमान रहता था । " १. हरिवंश ६ । १२७ २. ऋषयस्ते हि भाष्यन्ते ये स्थिताजन्तुपालने । पद्म ११।५८ चारित्रसार ४७ १; धवला पुस्तक ७ २०; प्रवचनसार २४६ ३. ४. पद्म १०६ ६० ५. वही १०६६० ६. वही १०६ ८७ ७. हरिवंश ६१६३ ८. वही ४२।५३ €. पद्म १०५।१६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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