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आर्थिक व्यवस्था
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घण्टीतंत्र' (अरहट या रहट) द्वारा कुओं, तालाबों आदि से जल निकालकर सिंचाई करते थे । खेतों की सिंचाई के लिए नहरें अत्यधिक लाभप्रद प्रमाणित हुई, जिनका उल्लेख महा पुराण में उपलब्ध होता है । २ नहरों से नालियों का निर्माणकर कृषक अपने खेत तक पानी ले जाते थे। उक्त सिंचाई के साधन अदेवमातृका के अन्तर्गत आते हैं। सिंचाई के उक्त साधनों की पुष्टि जैन पुराणों के प्रणयनकाल के जैनेतर ग्रन्थों से भी होती है, जिनमें झील, नदी, कुआँ, मशीन कुआँ, अरहट, तालाब तथा नदी बाँध का उल्लेख है।'
आलोच्य जैन पुराणों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि कृषक खेत में बीज वपन करने के उपरान्त सिंचाई कर उसकी निराई एवं गुड़ाई करते थे। इसके अनन्तर पुनः सिंचाई की जाती थी। फसलों के पक जाने पर उसकी कटाई कर उसे खलिहान में एकत्रित करते थे । फिर बैलों से दंवरी चलाकर मड़ाई की जाती थी । मड़ाई के उपरान्त अनाज और भूसे को पृथक् करने के लिए ओसाई की जाती थी। तदनन्तर अनाज को घर ले जाते थे और खाने के काम लाया जाता था। भूसे को बैल, गाय, भैंस को खिलाने के लिए रखते थे।
खेती की रक्षा करना परमावश्यक था। महा पुराण के वर्णानानुमार कृषकबालाएँ पशु-पक्षियों से खेत की रक्षा करती थीं।" चञ्चापुरुष का उल्लेख महा पुराण में हआ है जो खेत के रक्षार्थ रखे जाते थे, जिनको देखकर जानवर भाग जाते थे।
जैन पुराणों में अधोलिखित प्रमुख अनाजों का उल्लेख मिलता है-ब्रीहि, साठी. कलम, चावल, यव (जौ), गोधम (गेहूँ), कांगनी (कंगव), श्यामाक (सावाँ), कोद्र (कोदो), नीवार, वरका (बटाने), तिल, तस्या (अलसी), मसूर, सर्षप (सरसों), धान्य (धनिया), जीरक (जीरा), मुद्गमाषा (मूंग), ढकी (अरहर), राज (रोंसा), माष (उड़द), निष्पावक (चना), कुलित्थ (कुलथी), त्रिपुट (तेवरा),
१. पद्म २।६, ६।८२; महा १७।२४; हरिवंश ४३।१२७ २. महा ३५१४० ३. अराजितपृच्छा, पृ० १८८ ४. महा ३।१७६-१८२, १२।२४४, ३५।३०; पद्म २।५ ५. वही ३५॥३५-३६; तुलनीय-मनु ७।११० पर टीका ६. वही २८।१३०; तुलनीय-देशीनाममाला २६
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