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आर्थिक व्यवस्था
[i] मेयमान : इसके अनेक उपभेद हैं । इसके द्वारा रसायन एवं खाद्य तथा अन्य वस्तुओं की माप की जाती थी। दैनिक जीवन में इसका अत्यधिक उपयोग था।
[i] देशमान : देशमान से दूरी तथा लम्बाई मापी जाती थी। अंगुल, वितास्त, रत्नि, कुक्षि, धनुष तथा गव्यूत द्वारा दूरी और परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका एवं यव द्वारा लम्बाई मापी जाती थी।
[iii] कालमान : काल मापने के लिए समय, आवलिका, श्वास, उच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहुर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत (शताब्दी) से शीर्ष पहेलिका तक, नालिका और शंकुच्छाया का उपयोग किया जाता था।
[iv] तुलामान : पल, छटांक, सेर आदि से माप करना तुलामान था । दूसरे की आँख बचाकर कम-ज्यादा तौलने और मापने की सूचना मिलती है ।
पूर्व मध्यकाल में साहित्यिक एवं अभिलेखीय माप प्रणाली पर प्रकाश पड़ता है । भारक का प्रयोग नारियल, अन्न, रुई, शकर, गुड़ एवं मंजिष्ठ आदि के लिए होता था । घटक एवं कुम्भ से मक्खन और तेल; मूतक और माणक से नमक; पुलक से फूल; कर्ष और पलक से तेल एवं घी; वुम्बक से शराब और मणि से अनाज तौला जाता था। सेइ और द्रोणकारी भी अन्न तौलने के बाट थे।'
१. कैलाश चन्द्र जैन-वही, पृ० २८८
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