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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
(i) महत्त्व : जैन पुराणों में जीवन की अन्तिम परिणति मोक्ष को माना है । इसकी महत्ता प्रतिपादित करते हुए हरिवंश पुराण में इस संदर्भ में उल्लेख आया है कि सम्पत्ति हाथी के कान के समान चंचल है, संयोग प्रियजनों के वियोग से दुःखदायी है और जीवन-मरण के दुःख से नीरस है । एक मोक्ष ही अविनाशी है । इसलिए मोक्ष प्राप्ति का उपाय करना चाहिए । अन्यत्र उल्लिखित है कि निर्ग्रन्थ मुद्रा के धारक मुनि के बन्ध के कारणों का अभाव तथा निर्जरा के द्वारा जो समस्त कर्मों का अत्यन्त क्षय होता है, वह मोक्ष का बोधक है ।
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(ii) मोक्ष प्राप्ति के साधन : आलोच्य जैन पुराणों में मोक्ष प्राप्ति के विभिन्न उपायों का उल्लेख हुआ है । चतुर्थ शुक्लध्यान के द्वारा मोक्ष होता है और मोक्ष होने से जीव को सिद्ध सम्बोधित करने का वर्णन महा पुराण में उपलब्ध होता है । सम्पूर्ण कर्मों के क्षय हो जाने से मोक्ष का बोध होता है और एक देश का क्षय होना निर्जरा का बोधक है । हरिवंश पुराण में धर्म को मोक्ष का कारण स्वीकार किया है । जैन पुराणों के कथनानुसार मोक्ष का कारण तो तपश्चरण है ।" महा पुराण की मान्यतानुसार छः बाह्य और छः आन्तरिक तपों के अनन्तर आयु के अन्त में मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद सकषायता एवं संयोग केवली अवस्था को त्यागने के उपरान्त मोक्ष की उपलब्धि होती है ।
जैन पुराणों में वर्णित है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्य की एकता ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है । इनमें से किसी एक की भी अनुपलब्धि से मोक्ष प्राप्ति सम्भव नहीं है ।" उनका वर्णन निम्नवत् है :
(१) सम्यग्दर्शन : पद्म पुराण में वर्णित है कि तत्त्वों का श्रद्धान करना ही सम्यग्दर्शन है । शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा तथा प्रत्यक्ष ही उदार मनुष्यों में दोषादि लगाना - ये पाँच सम्यग्दर्शन के अतिचार कथित हैं । परिणामों की
सम्पदत्र
१.
२.
३. महा ६७।८-६
४.
धर्म एष जिनभाषितः शिवप्राप्तिहेतुवधादिलक्षणः । हरिवंश ६३३६०
पद्म ८६६, हरिवंश ६४ । ५१
"मोक्षमक्षयमतोऽर्ज मेदबुधः । हरिवंश ६३।७०
• "निर्ग्रन्थरूपिणः । हरिवंश ५८ । ३०३
बन्धहेतोरभावाद्धि'
५.
६. महा ६२।१६८
७.
पद्म १०५।२१०, १२३१४३-४६; महा २४ १२०, ७४ । ५४३; तुलनीय - तत्त्वार्थ सूत्र १।१; दर्शनपाहुड ३०; मोक्षपाहुड ३४
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