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जन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन ___महा पुराण में चित्रकला के लिए मुख्यतः तीन बातों का ज्ञान होना आवश्यक एवं अनिवार्य है, जिससे चित्रकला में वैशिष्टयता आ जाती है। ये तीन बातें अग्रलिखित हैं-(१) रेखाओं का आवश्यतानुसार स्पष्ट प्रयोग, (२) रंगों का समुचित उपयोग और (३) भावों का परिस्थितियों के अनुसार प्रदर्शन ।' इन विशेषताओं के कारण ही स्मिथ और व्यूलर ने जैन चित्रकला की प्रशंसा करते हुए उल्लेख किया है कि जैन चित्रों में एक नैसर्गिक अन्तःप्रवाह, गति, डोलन एवं भाव-निदर्शन विद्यमान है ।२ जैन चित्रों की निर्मलता, स्फति एवं गतिशीलता से मुग्ध होकर डॉ० आनन्द कुमार स्वामी ने कहा है कि--जैन चित्रों की परम्परा का अनुकरण अजन्ता, एलोरा, बाघ, सित्तन्नवासल के भित्तिचित्रों में है। समकालीन सभ्यता के अध्ययन के लिए इन चित्रों से बहुत कुछ ज्ञानवृद्धि होती है, विशेषरूप से वेषभूषा तथा सामान्य उपयोग में आने वाली वस्तु के सम्बन्ध में ज्ञान उपलब्ध होता है।
१. महा ७.१५५ २. स्मिथ-हिस्ट्री ऑफ फाइन आर्ट इन इण्डिया एण्ड सीलोन, पृ० १३३;
पर्सी ब्राउन-इण्डियन पेण्टिग, पृ० ३८, ५१ ३. नाना लाल चिमन लाल मेहता-भारतीय चित्रकला, पृ० ३३ .
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