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ललित कला
[ग] विविध ललित कला जैन पुराणों के परिशीलन से उन ललित कलाओं का ज्ञान प्राप्त होता है, जो तत्कालीन समाज में प्रचलित थीं। समाज में इन ललित कलाओं के ज्ञाता को श्रद्धा एवं सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। यही कारण है कि जैमाचार्यों ने अपने पुराणों में इनका यथास्थान उल्लेख किया है । जैन पुराणों में उल्लिखित अधोलिखित विविध ललित कलाओं का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है :
१. पत्रच्छेद कला : पद्म पुराण में उल्लिखित है कि पत्नच्छेद क्रिया (कला) पत्न, वस्त्र तथा सुवर्णादि के ऊपर किया जाता था। यह दो प्रकार का होता था-स्थिर और चंचल ।' पत्रच्छेद कला के निम्नोद्धृत तीन भेद पद्म पुराण में ही उल्लिखित हैं :
[1] बुष्किम : इसमें सुई या दांत का प्रयोग होता था। [i] छिन्न : इसमें कूची से काटकर पृथक्-पृथक् अवयवों में विभक्त करते थे।
fili] अछिन्न : इसमें कूची आदि से काटा तो जाता था, परन्तु अन्य अवयवों से सम्बद्ध रहता था।
२. पुस्तकर्म कला : मिट्टी, लकड़ी, धातु आदि से खिलोना निर्माण करने की कला को पुस्तकर्म कला की संज्ञा प्रदान की गई है । पद्म पुराण में इसके तीन प्रकार उल्लिखित हैं :
fil क्षयजन्य : इसमें लकड़ी आदि को छीलकर खिलौने का निर्माण करते थे। [i] उपचयजन्य : इस विधि में ऊपर से मिट्टी लगाकर निर्मित करते थे। fini] संक्रमजन्य : इसमें सांचे आदि का प्रयोग किया जाता था।
उक्त पुराण में ही पुस्तकर्म कला के अधोलिखित अन्य प्रकारों का भी उल्लेख हुआ है :
[i] यन्त्र : इस कोटि के खिलौनों के निर्माण में यन्त्र का प्रयोग होता था। १. पनवस्त्रसुवर्णादिसंभवं स्थिरचञ्चलम् । पद्म २४।४३; तुलनीय-गायत्री वर्मा
कालिदास के ग्रन्थ : तत्कालीन संस्कृति, वाराणसी, १६६२, पृ० २३४ २. पद्म २४१४१-४२ ३. वही २४।३८-३६ ४. वही २४१४०
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