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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
(३) नृत्य के प्रकार एवं स्वरूप : पद्म पुराण में नृत्य के तीन प्रकार-अङ्गहराश्रय, अभिनयाश्रय तथा व्यायामिक-वर्णित हैं, जिनमें सभी नृत्य समाहित हैं। जैन सूत्रों में नाटक की ३२ विधियों का उल्लेख हुआ है । आलोच्य पुराणों में नृत्यों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन हुआ है। उस समय प्रचलित नृत्यों के आधार पर उनका स्वत: विभाजन किया जा सकता है :
(i) आनन्द नत्य : इस नृत्य का उल्लेख सभी जैन पुराणों में हुआ है। गान्धर्वो ने विभिन्न प्रकार के वाद्यों को बजाते हुए इस नृत्य को किया था। उस समय समाज में इस नृत्य का विशेष रूप से प्रचलन था ।
(ii) अलातचक्र नत्य : फिरकी लेते हुए विभिन्न मुद्राओं द्वारा शरीर के अंग-प्रत्यंग का संचालन अलातचक्र में करते थे। इस नृत्य में शीघ्रता अवश्यक थी।
(iii) अंगुष्ठ नत्य : अंगुली के द्वारा जो नृत्य किया जाता था उसे अंगुष्ठ नृत्य नाम से सम्बोधित किया जाता था।'
(iv) इन्द्रजाल नृत्य : जिस नृत्य में क्षण में व्याप्त, क्षण में लघु, क्षण में प्रगट, क्षण में अदृश्य, क्षण में दूर, क्षण में समीप, क्षण में आकाश में, क्षण में पृथ्वी पर आना ही प्रदर्शित होता है उसे इन्द्रजाल नृत्य की संज्ञा से अभिहित करते हैं । इसमें नर्तक एवं नर्तकी दोनों को अत्यधिक श्रम करना पड़ता है।
(v) कटाक्ष नृत्य : महा पुराण में उल्लिखित है कि स्त्रियाँ अपने कटाक्षों का विक्षेपण करती हुई किसी पुरुष की बाहुओं पर जो नृत्य करती हैं उसका नामकरण कटाक्ष नृत्य किया गया है । सूचीनृत्य पुरुष की ऊँगलियों पर होता है तथा कटाक्ष नृत्य में पुरुष की बाहुओं पर नर्तन करते हैं।
(vi) चक्र नत्य : इस नृत्य में नर्तकियों की फिरकियों द्वारा मात्र सिर का मुकुट ही घूमता है। शरीर का अन्य भाग नहीं नचाया जाता । १. पद्म २४१६ २. राजप्रश्नीय टीका, पृ० १३१; भगवतीसूत्र १।३ ३. महा १४११५७; पद्म ३८।१३५; हरिवंश ५३।३० ४. वही १४।१२८, १४।१४३ ५. हरिवंश २१।४६ ६. महा १४।१३०-१३१ ७. वही १४।१४४ ८. वही १४।१३६
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