________________
३०२
जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
उत्पन्न करने की कला को नृत्त नाम प्रदान किया है। सोमेश्वर ने उत्सव, जय, हर्ष, काम, त्याग, विलास, विवाद तथा परीक्षा आदि आठ अवसरों पर नृत्य कराने की व्यवस्था दी है । पद्म पुराण के उल्लेखानुसार राजा सहस्रार ने पुत्र-जन्मोत्सव पर २६,००० नृत्यकारों द्वारा नृत्य का आयोजन किया था ।
जैन पुराणों में नृत्य करने वाले पुरुष को नर्तक एवं नृत्य करने वाली स्त्री को नर्तकी की संज्ञा प्रदत्त है । इनके अनेक भेद होते थे । इसी लिए महा पुराण में वर्णित है कि राजा नट एवं नटी के भेद का ज्ञाता होता था ।" नट, नर्तकी' नर्तक, वैता लिक, चारण तथा लटिका आदि छः प्रकार के नर्तकियों का उल्लेख मानसोल्लास में हुआ है ।' महा पुराण में राजपुत्रों के लिए नृत्य - शिक्षा की व्यवस्था थी । ललितकला की चौंसठ कलाओं में नृत्य कला का भी समावेश है ।"
(१) विशेषताएँ जैन पुराणों के अनुशीलन से नृत्य कला की विशेषताओं पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । सुन्दर एवं आकर्षक वस्त्राभूषणों को धारण कर नृत्य करने का उल्लेख महा पुराण में हुआ है। पद्म पुराण में नृत्य की विशेषताओं का वर्णन रोचक ढंग से हुआ है । समस्त सुन्दर नृत्यों के लक्षणों का ज्ञान, मनोहर वेशभूषा धारण करना, हार-मालादि से अलंकृत, लीला सहित, सुस्पष्ट अभिनय, सुन्दरता, मुद्रा-प्रदर्शन में निपुण, लय परिवर्तन के साथ स्तन मण्डल को कम्पित करना, जाँघों का अभिनय, शारीरिक भंगिमाओं का संगीत शास्त्र के अनुरूप प्रदर्शन करना चाहिए ।" पुरुष का स्त्री वेष धारण कर और स्त्री का पुरुष वेष ग्रहण कर
१. मन्मथ राय - प्राचीन भारतीय मनोरञ्जन, इलाहाबाद, सं० २०१३,
पृ० ११४
शिवशेखर मिश्र - मानसोल्लास : एक सांस्कृतिक अध्ययन, वाराणसी,
२.
३.
8.
१६६६, पृ० ४३१
पद्म ७।१६-२५
महा १४/१५३, ६२।४२६ हरिवंश ६।४७
५. वही ४७।१५
६. मानसोल्लास ४।१८।२८५८ - २८५६
७.
महा १६ । १२०
८. पद्म ३६ । १६१; हरिवंश ८।४३
&.
१०.
महा १४ ।१२४
पद्म ३६।५३-५६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org