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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
महा पुराण' तथा हरिवंश पुराण में इसके लिए बाँसुरी शब्द व्यवहृत हुआ है। वंश या बाँसुरी आधुनिक बाँसुरी के लिए प्रयुक्त हुआ है । यह मुंह से फूंकने पर ध्वनित होती है।
(iv) वेणु' : इसका प्रयोग भी बाँसुरी के अर्थ में हुआ है । जैन पुराणों के अनुसार बाँस से निर्मित होने के कारण इसे वेणु नाम प्रदत्त किया गया है।
(v) शंख : हरिवंश पुराण में पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख हुआ है।' शंख समुद्र से निकाला जाता है। धार्मिक एवं युद्ध आदि अवसरों पर इसके प्रयोग का उल्लेख है।
(४) धन' वाद्य : आलोच्य जैन पुराणों में उल्लेख हुआ है कि कांसे से निर्मित झांझ-मजीरा आदि घन वाद्य कहलाते हैं। इनकी उत्पत्ति ताल वाद्यों से हुई है। जैन पुराणों में अधोलिखित घन वाद्यों का वर्णन है :
(0) घण्टा : इसका महा पुराण में उल्लेख हुआ है। इसका प्रयोग मुख्यत: मन्दिर या देवी-देवताओं की पूजा अर्चना में होता है। इसके आकार में कतिपय परिवर्तन के उपरान्त भी इसका रूप प्राचीन ही है।
(ii) ताल' : महा पुराण में ताल शब्द का वर्णन हुआ है। अग्नि द्वारा शोधित काँस धातु से निर्मित यह वाद्य घन वाद्यों में प्रमुख है। इसका आकार मंजीरा से बड़ा होता है । यह तेरह अंगुल की परिधि एवं मध्य में स्तनाकार होता है । इसके बीच में डोरी लगी रहती है । यह दोनों हाथ से बजाया जाता है।
(iii) कंसवादक (झांझ) : इसका उल्लेख महा पुराण एवं हरिवंश पुराण में
१. महा १४१११६ २. हरिवंश १०।१०२ ३. पद्म ६।३७६; हरिवंश ५६१६; महा १२।१६६-२०० ४. वही ६।३७६, वही ८।१४१; वही १३।१३, १५११४७, ६८।६३१ ५. हरिवंश १।११३ ६. पद्म २४१२०; हरिवंश १६१४३ ७. महा १४।१५८ ८. हरिवंश २२।१२ ६. महा ६७६४, १३।१३ १०. हरिवंश ५॥३६५
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