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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
मन्मथ राय ने गीत के तीन आकार एवं प्रकार, आठ गुण एवं छः दोष वर्णित किये हैं । तीन आकारों में मृदुगीत ध्वनि, तीव्रगीत ध्वनि तथा क्षययुक्त मन्द गीत ध्वनि सम्मिलित हैं। आठ गुणों के अन्तर्गत–पूर्ण कला से, राग से, अलंकृत, स्पष्ट, मधुर, तालवंश के स्वर से संयुक्त, तालस्वर युक्त एवं मूर्छनाओं का ध्यान रखते-हैं। गाते समय गायन के इन छः दोषों-भीति, द्रुत, रहस्य, उत्ताल, काक स्वर तथा नकियाना से बचना आवश्यक माना गया है। जैनेतर रामायण में गायन के विषय में वर्णित है कि गायन मधुर, तीनों प्रमाणों या लयों (दूत, मध्य एवं विलम्बित) से युक्त, सात जातियों से युक्त, वीणा वादन की लय से मिलता होना चाहिए। रामायण में गायन में रसों का विशेष महत्त्व बताया गया है।' गायन की कुछ मुद्राओं का अंकन भरहुत की कला में उपलब्ध है।
[ii] वाद्य-संगीत : किसी अन्य साधन को सम्मिलित किये बिना ही संगीत के मूलाधार स्वर एवं लय के द्वारा वाद्य संगीत मनुष्य को आनन्ददायक होता है। संगीत में वाद्य संगीत का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसमें किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, जबकि नुत्य एवं गीत में सहायक वाद्यों का होना अनिवार्य है। वाद्यों का प्रयोग अन्यत्र भी किया जा सकता है। वाद्य का शास्त्रीय संगीत में अपना विशेष स्थान है। शास्त्रीय संगीत से वाद्य को पृथक् करना असम्भव है, क्योंकि शास्त्रीय संगीत वाद्यों पर ही आश्रित हैं।
___ जैन ग्रन्थों में वाद्यों को चार भागों-तत, वितत, घन तथा सुषिर-में विभक्त किया गया है। यहाँ पर वितत अवनद्ध के लिए आया है। जैन पुराणों में वाद्यों को तत, अवनद्ध, सुषिर एवं घन वर्गों में विभाजित किया गया है। जैनेतर साक्ष्यों में भी वाद्यों को तत, अवनद्ध, सुषिर एवं घन में विभक्त किया गया है। वैदिक परम्परा के सूत्र साहित्य और बौद्ध जातकों, निपटकों एवं अन्य ग्रन्थों में भी वाद्यों
१. मन्मथ राय-प्राचीन भारतीय मनोरञ्जन, इलाहाबाद, सं० २०१३,
पृ० १०६ २. पाठ्ये गेये च मधुरं प्रमाणौस्त्रिभिरन्वितम् ।
जातिभिः सप्तभिर्युक्तं तन्त्रीलयसमन्वितम् ॥ रामायण १।४७ ३. रामायण १।४।८ ४. धर्मावती श्रीवास्तव-प्राचीन भारत में संगीत, वाराणसी, १६६७, पृ० ६५ ५. आचारांगसूत्र २।१५।५-१५,भगवतीसूत्र ५।४।६३६ ६. हरिवंश ७।८४; पद्म १७१२७४, २४।२०
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