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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन xii] श्रतियाँ : भरत ने श्रतियों की संख्या बाईस निर्धारित किया है। आलोच्य हरिवंश पुराण में भी श्रुतियों की निर्धारित संख्या बाईस ही है। षड्ज, मध्यम, एवं पंचम में चार-चार, ऋषभ तथा धैवत में तीन-तीन और गांधार तथा निषाद में दो-दो श्रुतियाँ हैं । इस प्रकार कुल बाईस श्रुतियाँ होती हैं ।
[xiii] ग्राम : 'ग्राम' शब्द समूह का द्योतक है। भरत के मतानुसार सम्वादी स्वरों के उस समूह से ग्राम का बोध होता है, जिनमें श्रुतियाँ व्यवस्थित रूप में हों एवं मूर्च्छना, तान, वर्ण, क्रम, अलंकार इत्यादि का आश्रय हो ।' ग्राम को मूर्च्छना तथा स्वर के साथ प्रयुक्त करने का उल्लेख पद्म पुराण में हुआ है ।' भरत ने ग्राम के तीन भेद-षड्ज, मध्यम एवं गान्धार-निरूपित किये हैं। हरिवंश पुराण में ग्राम के दो भेद षड्ज ग्राम एवं मध्यम ग्राम का उल्लेख उपलब्ध है :
(१) षड्ज ग्राम : हरिवंश पुराण में षड्ज ग्राम के विषय में सविस्तार वर्णन मिलता है । षड्ज ग्राम में षड्ज तथा पंचम स्वर का संवाद होता है। इसमें बाईस श्रुतियाँ और सात मूर्छनाएँ प्रयुक्त होती हैं । षड्ज में चार, ऋषभ में तीन, गान्धार में दो, मध्यम में चार, पंचम में चार, धैवत में दो, निषाद में तीन श्रुतियाँ होती हैं। इस प्रकार कुल बाईस श्रुतियाँ षड्ज ग्राम में होती हैं। उत्तर भद्रा, रजनी, उत्तरायतता, शुद्ध षड्जा, मत्सरीकृता, अश्वक्रान्ता तथा आभिरुद्गताये सात षड्ज ग्राम की मूर्च्छनाएँ हैं । हरिवंश पुराण के अनुसार षड्ज ग्राम की आठ जातियाँ-पाड्जी, आर्षभी, धैवती, निषादजा, सुषड्जा, षड्जोदीच्च, षड्जकौशिकी तथा षड्जमध्या-हैं ।" पद्म पुराण में षड्ज ग्राम की आठ जातियों में धैवती, आर्षभी, षड्जषड्जा, उदीच्या, निषादिनी, गान्धारी षड्जकैकशी तथा षड्जमध्यमा को सम्मिलित करने का उल्लेख हुआ है । १
१. तत्र वा द्वाविंशतिश्रुतयः । भरत-नाट्यशास्त्र, अध्याय २८, पृ० ४३३ २. हरिवंश १६।१५८-१५६ । ३. कैलाश चन्द्र देव बृहस्पति-वही, पृ० ५
पद्म ३७।१०८ ५. कैलाश चन्द्र देव बृहस्पति-वही, पृ० ६ ६. हरिवंश १६।१५५ ७. वही १६१५५ ८. वही १६१५८-१५६ ६. वही १६३१६१-१६२, १६११६५-१६६ १०. हरिवंश १६।१७४-१७५ ११. पद्म २४।१२
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