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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
काष्ठ मूर्ति से पाषण या कांस्य में कब परिवर्तित हो गई इसका साक्ष्य नहीं मिलता। वस्तुतः जैनियों में काष्ठ निर्मित मूर्ति की पूजा का निषेध है। अतः यह सम्भावना हो सकती है कि पूजा में जल एवं दुग्ध-प्रक्षालन तथा चन्दन-चर्चण आदि से काष्ठ निर्मित मूर्ति का प्रयोग उपयुक्त नहीं समझा गया। किन्तु अन्य देवी-देवताओं तथा स्थापत्य के अंग के रूप में संयोजित मूर्तियाँ अवश्य काष्ठ से निर्मित होती रहीं। इसी लिए विभिन्न संग्रहालयों एवं निजी संग्रहों में इस प्रकार की अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं।'
३. सामग्री : जैन पुराणों में 'जिन' प्रतिमाओं के निर्माण के लिए सुवर्ण एवं रत्नों के प्रयोग का उल्लेख मिलता है।२ महा पुराण में तीर्थंकर से इतर मूर्तियों के निर्माण में अन्य धातु-लोहा, ताँबा आदि-के प्रयोग की व्यवस्था प्रदत्त है ।' पद्म पुराण में महाराज दशरथ की मूर्ति (पुतला) का उल्लेख प्राप्य है, जो उनकी आकृति से बिल्कुल मिलती-जुलती थी। मूर्ति के अन्दर रुधिर के स्थान पर लाख आदि का रस उपयोग किया गया था। वसुनन्दि कृत श्रावकाचार में मणि, रत्न, सोना, पीतल, मोती एवं पाषाण आदि से प्रतिमाओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।" जयसेन ने स्फटिक की प्रतिमाओं को प्रशस्त माना है ।' लोहा, पाषाण, काष्ठ, मिट्टी, गोबर, कांसा, शोशा एवं कलई से निर्मित प्रतिमाओं का निषेध किया गया है।" जैनेतर भविष्य पुराण में मूर्ति निर्माण सप्त वस्तुओं-स्वर्ण, रजत, ताँबा, पत्थर, मिट्टी, लकड़ी तथा वार्सी (कनवास)-का उल्लेख हुआ है ।'
डॉ० राय कृष्णदास के मतानुसार सोना, चाँदी, तांबा कांसा, पीतल, अष्टधातु आदि प्राकृतिक एवं कृत्रिम धातु. पारे के मिश्रण, रत्न, उपरत्न, काँच, कड़े व मुलायम पत्थर, मसाले, कच्ची व पकाई मिट्टी, मोम, लाख, गन्धक १. अमलानन्द घोष-वही; पृ० ४४८ २. हरिवंश ५।३६२; पद्म २८१६६; महा ४३।१७३, ३. महा १०।१६३ । ४. पद्म २३।४१-४३ ५. वसुनन्दि कृत श्रावकाचार, श्लोक ३६० ६. प्रतिष्ठापाठ ६६, पृ० १७ ७. आचार-दिनकर, भाग २, पृ० १४३ ८. कांचनी राजती ताम्री पार्थिवी शैलजा स्मृता ।
वार्सी चालेख्यका चेति मूर्तिस्थानानि सप्तवै ॥ भविष्य पुराण १।१३१।२-३
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