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कला और स्थापत्य
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[i] शासनदेव : जैन मान्यतानुसार चौबीस शासन देव होते हैं । यद्यपि सभी शासनदेवों का सविस्तार वर्णन जैन पुराणों में अनुपलब्ध है, तथापि यत्र-तत्र वर्णन अवश्य उपलब्ध होते हैं । पद्म पुराण में वर्णित है कि समीचीन धर्म-यक्ष की रक्षा में निपुण, कल्याणकारी एवं भक्ति युक्त शासनदेवों की मूर्तियाँ जैन मन्दिरों में प्रतिष्ठापित थी ।'
[iii] यक्ष-यक्षिणी : जैनधर्म में चौबीस यक्षों और यक्षिणियों का उल्लेख मिलता है । डॉ० आर० एस ० गुप्ते ने यक्षों को शासनदेवता स्वीकार किया है, जो तीर्थंकर के भक्त होते थे । तीर्थंकरों के साथ यक्षों की प्रतिमा निर्मित करने का उल्लेख पद्म और हरिवंश पुराणों में उपलब्ध है । सिंह एवं हाथियों की मूर्तियां अत्यन्त सुन्दर ढंग से निर्मित की गयी थीं ।
[IV] सप्तर्षि: पद्म पुराण में सप्तर्षियों में सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस और जयमित्र का नामोल्लेख है । ये निर्ग्रन्थ मुनि होते थे और विहार करते थे । शत्रुघ्न ने इनकी मूर्तियाँ अत्यन्त सुन्दर निर्मित कराई थीं ।"
[v] नौग्रह : जैन धर्म में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु नौग्रहों का वर्णन मिलता है । जैन पुराणों में इनका सम्यक् विवरण उपलब्ध नहीं होता । परन्तु यत्र-तत्र इनका उल्लेख मिलता है । उदाहरणार्थ, पद्म पुराण में सीता की तपोमयी अवस्था का वर्णन सूर्य से किया गया है !'
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[vi] श्रुतदेवी और विद्या देवी : ये ज्ञान की देवियां थीं इनकी संख्या सोलह वर्णित है । जैन पुराणों में यत्र-तत्र इनका भी उल्लेख हुआ है । हरिवंश पुराण में जिन प्रतिमाओं के साथ श्रुतदेवी की मूर्ति का वर्णन प्राप्य है ।
१.
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३.
अधिष्ठिता भृशं भक्तियुक्तैः शासनदेवतैः । पद्म ६७|१२
अगर चन्द नाहटा — भारतीय वास्तुशास्त्र में जैन प्रतिमा सम्बन्धी ज्ञातव्य, अनेकान्त, वर्ष २०, कि० ५, दिसम्बर १६६७, पृ०२१४
आर० एस० गुप्ते - आइक्नोग्राफी ऑफ हिन्दू, बुद्धिस्ट ऐण्ड जैनस, बम्बई, १६७२, पृ० १७६
पद्म ७१।१६ - २१; हरिवंश ५।३६३
४.
५. वही ६२।१-३
६.
वही १०५।१०३
७. हरिवंश ५।३६३
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