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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
शरीर को गाड़ने, जल-प्रवाह और अग्नि-दाह का उल्लेख हैं । समाज के गरीब वर्ग के लोग मृतक के मृतशरीर को जल में प्रवाहित करते थे, परन्तु समाज के सम्पन्न व्यक्ति दाह संस्कार करते थे । जैन पुराणों में मृतक के अन्तिम संस्कार के स्थल को श्मशान कहा गया है । इसके साथ ही श्मशान के वीभत्स्य एवं भयंकर दृश्य का वर्णन उपलब्ध है । जैन आगमों में शव को पशुपक्षियों को खाने हेतु खुले स्थान में छोड़ने का उल्लेख है ।' अन्य स्थल पर शव के गाड़ने का वर्णन मिलता है । पद्म पुराण में उल्लिखित है कि मृत्यु होने पर मृतक के घर में संगीत, मंगल, उत्सव, पूजन आदि नहीं होते ।"
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जैन पुराणों में वर्णित है कि मृतक के शरीर पर आत्मीय जन कपूर, अगुरु, गौशीर्ष, चन्दन, उबटन आदि लगाते थे तथा स्नान कराते थे । आत्मीय जनों द्वारा रोने का भी उल्लेख मिलता है। पद्म पुराण में वर्णन आया है कि पति के मृत्यु पर स्त्रियाँ अपने हाथ की चूड़ियाँ तोड़ देती थीं। हरिवंश पुराण में उल्लिखित है कि सामान्यतया मृतक को जल देने की परम्परा नहीं थी, तथापि आत्मीय जनों द्वारा मृतकात्मा की शान्ति हेतु जल देने का भी विधान विहित है ।" पद्म पुराण में मृत्यूपरान्त लोकाचार के अनुसार क्रियाओं को सम्पादित करने का विधान है। जैन आगमों में मरणोपरान्त नीहरण, व्यंतराधिष्ठित, परिष्ठापन आदि क्रियाओं के करने का उल्लेख है । इसके साथ ही मृतकों के श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन कराने की भी व्यवस्था थी । "
१. पद्म ७८।२,८, ११८ । १२३; हरिवंश ६३।५६, ७२; महा ७५।२२७
२. वही १०६ । ६३-६५; महा ७५।२२७
३. महानिशीथ, पृ० २५
४.
बृहत्कल्पभाष्य ३ | ४८२४
५.
पद्म ११६।४०-४२
६. वही ७८1८ हरिवंश ६३।५५
७..
वही ७८/६
८.
हरिवंश ६३ । ५२; तुलनीय - बृहत्कल्पभाष्य ३ | ४८२४
4. लोकाचारानुकूलत्वाच्चक्रे प्रेतक्रियाविधिम् । पद्म ४६ ६ तुलनीय – विपाकसूत्र
१०.
२, पृ० २४
जगदीश चन्द्र जैन - प्राचीन जैन साहित्य में मृतक कर्म, आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रन्थ, कलकत्ता, १६६१, पृ० २३२-२३४
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