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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन राजा अवकाश काल में अपने प्रियजनों के साथ मनोविनोद करता था। महा पुराण के अनुसार राज प्रासाद में सभाभूमि, आस्थानमण्डप तथा आस्थायिक होती थी।'
() भवन : यह आयताकार आंगनयुक्त होता था। इसके अन्दर शयनागार, वातायन, अग्न्यागार, गर्भवेश्म, क्रीड़ावेश्म, सारभाण्डक आदि होते थे। चक्रवर्ती के भवन को सर्वतोभद्र संज्ञा प्रदान किया गया है । भवन के चारों ओर कोट होता था तथा द्वार तोरणयुक्त होते थे।२
(१०) शाला या शाल भवन : पद्म पुराण में यज्ञशाला', चन्द्रशाला', प्रेक्षकशाला', आतोद्यशाला (वादनशाला), नाट्यशाला', चतुःशाला आदि संज्ञाएँ शाला भवनों के लिए व्यवहृत हुई हैं । इनका पृथक् अस्तित्व होता था।
(११) कूटागार' : जिस भवन का निर्माण शिखरों के रूप में निर्मित किया जाता था उसे कूटागार नाम से अभिहित किया गया है। राजाओं तथा धनिकों द्वारा इनका उपयोग किया जाता था।
(१२) पुष्करावर्त : इनके निर्माण में इंटों का प्रयोग होता था। इसकी दीवालों पर चूने का पलस्तर करने के उपरान्त सफेदी कराई जाती थी।
(१३) भाण्डारगृह" : सामग्री के संचयनार्थ विशिष्ट प्रकार के गृह पृथक्तः निर्मित किया जाता था, उसे भाण्डारगृह नाम से सम्बोधन करते थे।
(१४) क्रीड़ास्थल (क्रीडानक) : समराङ्गण-सूत्रधार में क्रीड़ास्थल के लिए क्रीड़ागृह एवं क्रीड़ा-वेश्म शब्द व्यवहृत हुआ है। १२ क्रीडानक नियूंह (छपरी) बलभी (अट्टालिका), श्रृग (शिखर), प्रघण (देहली) से संयुक्त होते थे। अनेक प्रासादों से सुशोभित, रंगबिरंगे मणियों से निर्मित कुट्टिम (फर्श), सुन्दर दीपिकायें, सुन्दर संगीत से युक्त थे।"
PN-Marwa
१. महा ३६।२००, ४६।२६६ २. वही ३७।१४६ ३. पद्म ३५६ ४. वही १४११३१ ५. वही ६।४६ ६. वही ६५१४६ ७. वही ६८।११ ८. वही ८३।१८
६. महा २२।२६० १०. वही ३७।१५१ ११. वही ३७।१५१ १२. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल-समराङ्गणीय : _भवन निवेश, दिल्ली, १६६४,
पृ० ११-१२ १३. पद्म ८३६४१-४५
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