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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन वर्णन प्रस्तुत किया गया है। स्थापत्य के आरम्भिक सिद्धन्तों की दृष्टि से आवासगृह और मन्दिर में अधिक अन्तर नहीं है । मुख्य द्वार या सिंह द्वार की दिशा और स्थिति का निर्धारण सतर्कतापूर्वक स्थापत्य के सिद्धान्तों और नैमित्तिक विधानों के अनुरूप ही किया जाना चाहिए । गृह का अग्रभाग पृष्ठभाग से संकरा और नीचा होना उत्तम होता है। दुकान का अग्रभाग पृष्ठभाग से चौड़ा और ऊँचा होना चाहिए । मुख्य द्वार पूर्व में, पाकशाला (रसवती) नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम कोण) में, शयनागार दक्षिण में, शौचालय (नीहारस्थान) दक्षिण-पूर्व कोण में, कोशागार उत्तर में और धर्मस्थान उत्तर-पूर्व में । यदि गृह का मुख्यद्वार पूर्व में न हो तो जिस दिशा में हो उसी को पूर्व मानकर उक्त क्रम को बनाये रखना चाहिए। पशुओं के लिए घर के बाहर पृथक कक्ष हो । आवास-गृह का विस्तार गृहस्वामी की प्रतिष्ठा के अनुकूल होना चाहिए । आवास-गृहों के सन्दर्भ में अधोलिखित विवरण प्रस्तुत है :
(१) गृह या गेह : गृह और गेह एक ही अर्थ में आया है । पद्म पुराण में गृह और वेश्म का प्रयोग प्रासाद के अर्थ में हुआ।२ महा पुराण के अनुसार घर में वाटिकाएं होती थीं।' इसी पुराण में अन्यत्र वर्णित है कि गृह के वातायन सड़क की ओर खुलते थे, गृह के छत पर आलिन्द (झरोखे) होते थे, गृह के द्वार पर मकर, देव, मुनि, पशु-पक्षी, पुष्पलता, पल्लव, मत्स्य आदि की आकृतियाँ निर्मित करते
(२) सद्म : मनुष्यों के निवास करने के स्थान को सद्म संज्ञा से अभिहित किया है। पद्म पुराण में वर्णित है कि सभा, वापिका, विमान तथा बाग-बगीचों से युक्त भवन सद्म संज्ञा से सम्बोधित किया गया है और राजभवन को राजसद्म कथित है।' स्वर्णमय (काञ्जन सद्म) का भी उल्लेख पद्म पुराण में हुआ है।'
(३) वेश्म : वेश्म शब्द गृह का ही बोधक है।
(४) आगार : गृह अर्थ में आगार शब्द का प्रयोग उपलब्ध होता है। पद्म पुराण में प्रसवागार का उल्लेख प्राप्य है।
(५) आलय : आलय शब्द आ उपसर्ग तथा ली धातु से अधिकरण अर्थ में अ प्रत्यय होने से निर्मित हुआ है । जिसका अर्थ अच्छी तरह से लोगों से सम्बद्ध या
१. अमलानन्द घोष-जैन कला और स्थापत्य, ५. पद्म ५३।२०२
नई दिल्ली, १६७५, पृ० ५१३-५१५ ६. वही ६५६ २. पद्म ५३।२६४-२६६
७. वही ६।६५ ३. महा ४।१११
. ८. वही ३१७२ ४. बही ४६।२४५
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