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कला और स्थापत्य
२६७ मिलने का स्थान । जिसका जहाँ निवास हो वह उसका आलय होता है, जैसे विद्यालय । पद्म पुराण में रावण के आलय का भव्य वर्णन हुआ है।'
(६) स्नानागार : राजाओं के महल में स्नानागार पृथक् ही निर्मित किया जाता था जो कि १०० फुट लम्बा और ८० फुट चौड़ा होता था। इसके मध्य में धारागृह तथा वापिका होती थीं।।
(७) हर्म्य' : राजा या धनिक वर्गों के लिए जिन भव्य भवनों का निर्माण किया जाता था, उसे हर्म्य संज्ञा प्रदान किया गया है। यह सात मंजिला होता था।
(८) प्रासाद : प्र तथा आ उपसर्गों को पूर्व में रखकर सद् धातु में अधिकरण अर्थ में घत्र प्रत्यय होने से प्रासाद शब्द की उत्पत्ति हुई है। प्रासाद का अर्थ है अच्छी तरह से बैठने का स्थान । 'प्रासाद-रचना' वास्तुकला का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । 'प्रासाद' शब्द प्रायः सामान्यतया राजाओं के भवनों के लिए प्रयुक्त होता है, परन्तु वास्तुशास्त्रीय परिभाषा में इसका प्रयोग विशुद्धतः देव मन्दिर के लिए हुआ है । डॉ० प्रसन्न कुमार आचार्य 'इन्साइक्लोपीडिया ऑफ हिन्दू आर्कीटेक्चर' (पृ० ३६४) में लिखते हैं कि-'प्रासाद' शब्द का तात्पर्य आवासभवनों एवं देव मन्दिरों दोनों ही से होता है।
प्रासाद के भेदों में श्रीविजय, महापद्म, नंद्यावर्त, लक्ष्मीतिलक, नरवेद, कमल-हंस तथा कुञ्चर-ये सात भेद जिन मन्दिर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। विश्वकर्मा के अनुसार प्रासादों के अगणित भेद हैं, जिनमें २५ निम्नवत् हैं—केशरी, सर्वतोभद्र, सुनन्दन, नन्दिशाल, नंदीश, श्रीवत्स, अमृतोद्भव, हेमवंत, हिमकूट, कैलाश पृथ्वीजय, इन्द्रनील, महानील, भूधर, रत्नकूट, वैडूर्य, पद्मराग, वज्रांग, मुकुटोज्ज्वल, ऐरावत, राजहंस, गरुड़, वृषभ, मन्दिर और मेरू ।'
___ हरिवंश पुराण में वर्णित है कि चन्द्रकान्ता, वैदूर्य, सूर्यकान्ता, पद्मराग, मरकट, मोती की माला आदि मणियों एवं रत्नों से प्रासाद को सुसज्जित किया जाता था। प्रासाद से संलग्न (सटा) प्रमोद वन का निर्माण होता था, जिसमें
१. पद्म ७१।१६-४०
५. अमलानन्द घोष-वही, पृ० ५२५ २. महा ३७।१५२
६. हरिवंश २१७-१० ३. वही १२।१८४
७. महा ४७६ ४. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल-भारतीय-स्थापत्य, लखनऊ, १६६८, पृ० २१३ .
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