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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
(३) आस्थान-मण्डप : आलोचित जैन पुराणों में आस्थान-मण्डप शब्द का प्रयोग उपलब्ध होता है।' हर्षचरित में इसको आस्थान, राजसभा, सभा तथा सभामण्डल संज्ञा से अभिहित किया गया है। राजा 'आस्थान-मण्डप' में बैठकर विचार-विमर्श करते थे।
(४) अन्य मण्डप : आलोच्य जैन पुराणों में अन्य मण्डपों का भी उल्लेख प्राप्य होता है : लता-मण्डप', आस्थायिका, आहार-मण्डप', कुन्द-मण्डप', सन्नाहमण्डप आदि । आहार-मण्डप में भरत मित्रों, सम्बन्धियों आदि के साथ भोजन करते थे। सन्नाह-मण्डल आयुधशाला थी, जिसमें शस्त्रास्त्र और बाजे आदि रखे जाते थे।
(५) सभा : पद्म पुराण में सभा के विषय में अत्यन्त रुचिकर वर्णन उपलब्ध है । इसका अन्य नाम पद्म पुराण में सद्म शब्द उपलब्ध है। उक्त पुराण में राजसभा एवं सभा१२ का उल्लेख मिलता है। राजसभाओं के चारों ओर अत्यधिक विशाल खुला मैदान रहता था, जहाँ पर बहुत लोग बैठते थे । यह मैदान राजमहल से आवृत रहता था। इसके गवाक्षों से स्त्रियाँ सभा के कार्य-कलापों का अवलोकन करती थीं।" गवाक्ष के आगे छपरियां (निव्यूह) निर्मित होती थीं, जहाँ से सभा स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती थी। सभा रमणीय स्थान में निर्मित किया जाता था ।" उक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि इस प्रकार की सभा आधुनिक निरीक्षण भवन की तरह रहे होंगे।
(६) गवाक्ष : पद्म पुराण में वर्णित है कि स्त्रियाँ रावण को गवाक्ष से देखती थीं।" इस पुराण में गवाक्ष के लिए वातायन' शब्द का भी प्रयोग हुआ है। गवाक्ष का जाल के समान होने के कारण जालक" और जालक में मणि जटिल होने से मणिजालक" कथित है।
१. पद्म ३१, ८।६०; महा ३६।२०० १०. पद्म ५३।२०२ २. वासुदेव शरण अग्रवाल-हर्षचरित : ११. वही ३८।८६
एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० २०४ १२. वही ३८१६३-६४ ३. पद्म ४२१८५
१३. वही ३८६६ ४. महा ४०।२६६
१४. वही ३८१६७ ५. पद्म ८४|१४
१५. वही ४६।१५२ ६. वही २८८७
१६. वही ११.३२६ ७. वही १२।१८१
१७. वही १११३२६ ८. वही ८४।१४-१५
१८. वही १६१२२ ६. वही १२११८१
१६. वही १६१२२
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