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कला और स्थापत्य
भवन
वस्तुओं से परिपूर्ण होना चाहिए ।' भवन में पक्का धरातल होना चाहिए । में बगीचे एवं वापिकाएँ ( दीर्घिकाएँ) भी होनी चाहिए ।" राजा के दरबार में अनेक गोपुर, कोठ, सभा, शालाएँ, कूट, प्रेक्षागृह तथा कार्यालय आदि का होना अनिवार्य था । राज भवन की भूमि को चांदी तथा सुवर्ण के लेप से सुन्दर बनाना चाहिए ।" राजमहल ऊँचे होने चाहिए । मण्डप में अनेक स्तम्भ होना चाहिए जो मोतियों आदि की मालाओं से सुशोभित हों । इनमें अनेक प्रकार के पुतलों से युक्त विविध प्रकार के मण्डप निर्मित किये जाएँ। दरवाजे बड़े-बड़े रत्नों से जटित होने चाहिए | " भवन का द्वार विशाल आकार का होना चाहिए ।'
[ii] भवनों के प्रमुख अंग : अधुनातन युग में भवनों के अंगों के निर्माण विषयक विभिन्न प्रकार का विवरण मिलता है, उसी तरह आलोचित जैन पुराणों में भवनों का उल्लेख उपलब्ध होता है। भवन के प्रमुख अंगों का विवरण निम्नवत् प्रस्तुत है :
(१) द्वार : पद्म पुराण में द्वारविषयक सुन्दर चित्रण उपलब्ध होता है । प्रासाद का द्वार ऊँचे प्राकार से युक्त रहता था । द्वार पर सैकड़ों देदीप्यमान बेलबूटे उरेहे जाते थे तथा द्वार इन्द्रधनुष सदृश्य रंग बिरंगे तोरणों से सुशोभित रहता था ।" द्वार बहुत विशाल होते थे । द्वार के निर्माणार्थं काष्ठ का प्रयोग करते थे, परन्तु रत्नों, मणियों एवं सुवर्ण द्वारा निर्मित द्वार का भी उल्लेख हुआ है, जिन पर मोती की मालाएँ लटकायी जाती थीं ।" इसके दो प्रमुख अंग होते थे- अभ्यान्तर द्वार एवं वाह्य द्वार । १२ उक्त पुराण में ही कम्प नामक बढ़ई का उल्लेख उपलब्ध है, जो कपाट बनाकर अपनी जीविका चलाया करता था ।"
(२) स्तम्भ : स्तम्भ भवन का प्रमुख अंग होता था, जो मन्दिरों तथा पक्के भवनों के सन्दर्भ में निर्मित किया जाता था ।" ईंट एवं पत्थर के अतिरिक्त सुवर्ण तथा रत्न का भी प्रयोग स्तम्भों के निर्माण में होता था । १५
१.
पद्म ८३|१७ २ . वही ८३।१८ ३. वही ८३।१६
४. वही ८३।४-८
५.
वही ८१।११२
६. वही ८१।११३; महा १४।६४
७.
८:
वही ८१।११४
वही ८।११५
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२६३
ε. पद्म ७१।१८ १०. वही ३८।८३ ११. वही ६ । १२४-१२७ १२ . वही ३ । ११७
१३.
१४.
१५.
वही ६१।२४ पद्म४०।२८, ५३।२६४ वही ८०1८
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