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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
४. युद्ध का नियम : नियमानुसार सभी कार्य सम्पन्न होते हैं, अतः युद्ध नियम भी निर्धारित थे । जैन पुराणों के रचना - काल में युद्ध दिन में हुआ करते थे । परन्तु यदा-कदा रात्रि में भी शत्रु का आक्रमण हो जाता था । यह अत्यधिक ह्येय माना गया था । इसी लिए 'रात्रि-युद्ध' का निषेध किया गया था ।' हरिवंश पुराण
निन्द्रित एवं विघ्नबाधाओं से पीड़ित व्यक्ति, स्त्री तथा बच्चों के मारने का निषेध किया गया है । आगे यह भी कथित है कि एकाकी व्यक्ति पर सामूहिक आक्रमण ‘अन्याययुद्ध' के अन्तर्गत परिगणित है ।" युद्ध में पराजित राजा विजेता राजा को आभूषण, रत्न, कन्या, हाथी, घोड़े आदि उपहार में प्रदान करते थे । उस समय ऐसी व्यवस्था थी कि युद्ध में मृत सैनिक के दाह संस्कार का व्यय राजकीय कोश से किया जाता था । सामान्यतया युद्ध के नियमों का सभी पालन करते थे । योद्धागण अपने हथियारों की पूजा करने के बाद ही शयन करते थे । पद्म पुराण में युद्ध का भव्य वर्णन उपलब्ध है । यदि युद्ध में स्त्रियां शत्रु द्वारा पकड़ी जाती थीं तो उन्हें मुक्त कर दिया जाता था । "
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५. सेना के शस्त्रास्त्र : जैन महा पुराण के परिशीलन से ज्ञात होता है कि महाराज भरत को एक 'दण्डरत्न' तथा एक 'चक्ररत्न' प्राप्त हुआ था । यहाँ पर यह कह सकते हैं कि महाराज भरत को उक्त दिव्यास्त्र भगवान् के आशीर्वाद से उपलब्ध हुए थे । इन अस्त्रों में 'दण्डरत्न' सेना के आगे-आगे और 'चक्ररत्न' सेना के पीछे-पीछे चलता था । जैन पुराणों के प्रणयन काल में राजनीतिक अस्थिरता तथा अव्यवस्था व्याप्त थी । सैनिक - वृत्ति की प्रधानता होती जा रही थी। सेना के मार्ग प्रशस्त करने तथा दण्ड देने के लिए 'दण्डरत्न' था । सम्भवतः यह आधुनिक टैंक की भाँति का कोई विशेष अस्त्र था । इसी प्रकार 'चक्र' को आधुनिक बमवर्षक वायुयान कहा जा सकता है । इस ओर अनुसंधान एवं अध्ययन की विशेष आवश्यकता है ।
१.
पद्म ८६।५६, १०।५३; हरिवंश ६२।१८; महा ४४ । २७२
हरिवंश ६२।१८
२
३. वही ५३।१४
महा ६८१६४६-६६०
४.
५. वही ४४ । ३५१
६. वही ३२।८५-८६
७.
पद्म १२।२६०-३४५
८. वही १६।८४-८७ ६. वही २६/७
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