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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन के विस्तार से दूनी होनी चाहिए। यह १२ धनुष चौड़ा तथा २४ धनुष ऊँचा होता था। इसके अग्रभाग में मृदंग और बन्दर के आकार के कंगूरे निर्मित होते थे। इसका निर्माण ईंटों तथा पत्थरों से होता था । ईंटों की अपेक्षा पत्थरों का प्राकार प्रशस्त माना जाता था।' पद्म पुराण में लंका के प्राकार को महा प्राकार की अविधा प्रदान की गई है।२ इसी पुराण में वर्णित है कि प्राकार पर चढ़कर शत्रु एवं नगर के बाहर की देखरेख की जाती थी। पद्म पुराण में उस समय मायामय कोटों के वर्णन का उद्धरण मिला है, जो कि दुष्प्रवेश एवं दुर्गम्य होते थे। उसके समीप पहुँच कर मनुष्य वापस नहीं लौटता था। प्राकार (कोट) की ऊँचाई अत्यधिक थी। वे गोपुरदरवाजों से युक्त, दुनिरीक्ष्य, विस्तीर्ण एवं हिंसामय होती थीं। महा पुराण में उल्लिखित है कि नगर को घेरने के लिए प्राकार का निर्माण किया जाता है। इसी प्रकार जैनेतर ग्रन्थ अर्थशास्त्र में उल्लिखित है कि प्राकार की नींव इतनी विस्तृत होती थी कि उसमें रथी रथ पर बैठकर आवागमन कर सकता था।'
(४) अट्टालक : आलोच्य जैन पुराणों में विशाल अट्टालकों का उल्लेख उपलब्ध है। प्राकारों में बुजों का निर्माण होता था। इन्हें 'अट्टालक' कथित है। प्रत्येक दिशा के नगर-प्राकार में बुर्ज बनाये जाते थे। इनके मध्य की दूरी अधिक होती थी। ये संख्या में अधिक निर्मित किये जाते थे। बुर्ज की चोटी पर सैनिक नियुक्त किये जाते थे। दुर्ग पर आक्रमण के समय ये सैनिक उसकी रक्षा करते थे।' महा पुराण के अनुसार अट्टालिकायें १५ धनुष लम्बी तथा ३० धनुष ऊँची होती थीं और ३०-३० धनुष के अन्तर से निर्मित होती थीं। ये बहुत चित्र-विचित्र ढंग से चित्रित थीं तथा ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी होती थीं। ये बहुत ऊँची होती थीं, मानों आकाश को छू रही हैं । १. महा १६१६०-६१ २. पद्म ५।१७५ ३. वही ४६।२१५ ४. वही ५२।७-१४ ५. वही ३।३१६ ६. महा ५४।३५ ७. अर्थशास्त्र, अधिकरण २, अध्याय ३, पृ० ७८ ८. पद्म ३।३-६; हरिवंश ५।२६४; महा १६६२ ६. उदय नारायण राय-वही, पृ० २४८ १०. महा १६।६२-६३
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