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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
ही देता था ।' हमें ऐसे भी उदाहरण उपलब्ध होते हैं जब गुरु के घर में लड़के और लड़कियाँ साथ-साथ अध्ययन करते थे । पद्म पुराण के वर्णनानुसार चित्तोत्सवा तथा पिङ्गल गुरु के यहाँ साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करते थे। वे दोनों परस्पर प्रेम में आबद्ध हो जाने के कारण भाग गये और गान्धर्व-विवाह कर लिया, जिससे उन्हें विद्या की प्राप्ति नहीं हुई। चूंकि उस समय लड़कियों के लिए पृथक से पढ़ने की व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं मिलता है और अनेक विदुषी एवं प्रतिभाशाली कन्याओं का दृष्टान्त उपलब्ध है । ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि आलोचित जैन पुराणों के प्रणयनकाल में सहशिक्षा प्रचलित थी।
१३. पाठ्य-क्रम : उपर्युक्त अनुच्छेदों से स्पष्ट है कि पाँच वर्ष के बालक-बालिकाओं को लिपिज्ञान एवं सामान्य-भाषा सिखायो जाती थी। गणित का थोड़ा-बहुत ज्ञान कराया जाता था। आठ वर्ष तक बालक घर पर ही सामान्य शिक्षा ग्रहण करते थे । उपनयन संस्कार के बाद वे गुरु के पास शास्त्रीय ज्ञानार्जननार्थ 'जाते थे। जैन पुराणों में अधोलिखित पाठ्य-क्रम या शास्त्रों का उल्लेख मिलता है :'
चार वेद ( ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद), शिक्षा (उच्चारण विधि), कल्प, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष, निरुक्ति, इतिहास, पुराण, मीमांसा, न्यायशास्त्र, कामशास्त्र, हस्ति एवं अश्वशास्त्र, आयुर्वेद, निमित्तशास्त्र , शकुनशास्त्र, तंत्रशास्त्र, मंत्रशास्त्र , लक्षणशास्त्र, कलाशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र आदि हैं। हमारे आलोचित पुराणों के रचनाकाल के अन्य साक्ष्यों से भी पाठ्य-क्रम पर प्रकाश पड़ता है । बाणभट्ट ने कादम्बरी में पैंतालिस विषय, दण्डिन ने बारह और राजशेषर ने इकहत्तर विषयों का उल्लेख किया है।
१. पद्म २६५ २. वही २६॥५-७ ३. महा २१४८, १६।१११-१२५, ४१।१४१-१५५ ४. यादव-वही; पु० ४०.
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